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________________ ................. . २२. ... भगवती तिर्जवन्येनान्तर्मुहूर्तम् उस्कृष्टतो वर्षद्वयादारभ्य नववर्षपर्यन्तमित्यवगन्तव्यम् । 'समुग्धाया समोहया उन्चटणा य जहा उप्पलदेसे' समुद्घातः समवहतः उद्वर्तना च उत्पलोद्देशके समुद्घात:-समुद्घातपातिः समवहतः समवहननम् उद्वर्त्तने च यथोत्पल देशके कथितं तेनैव रूपेणेहापि अवगन्तव्यम् , शाल्यादिमूलगतजीवानां वेदना कपायमारणान्तिकरूपाः समुद्घाताः भवन्ति, तथा शाल्यादिमूलगतजीवा मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहता अपि म्रियन्ते, असमबहता अपि नियन्ते । तथा शाल्यादिमूलगतजीवा उत्ताः सन्तः तिर्यक्षु मनुष्येषु चोत्पधन्ते इति प्रज्ञापनामुत्रस्य पष्ठे व्युत्क्रान्तिपदे वनस्पतिकायिकानामु द्वर्तनामकरणं द्रष्टव्यम् । 'अह भंते ! अथ भदन्त ! 'सबपाणा जाब सब सत्ता' सर्वे माणा यावत् सर्वे सवाः यावत्पदेन सर्वे भूताः सर्वे जीवा इत्यनयोहणम् । से एक अन्तर्मुहर्त की होती है और उत्कृष्ट से दो से लेकर नौ वर्ष तक की होती है 'समुग्धोया समोहया उन्चहणा य जहा उप्पलुद्देसे' समुद्घात, समवहत-समुद्घात की प्राप्ति, एवं उद्वर्तना (निकलना) ये सब जैसे उत्पलोद्देशक में कथित हुए हैं-वैसे ही यहां पर भी जानना चाहिये-शाल्यादि मूलगत जीवों के वेदना, कषाय, मारणान्तिक ये तीन समुद्घात होते हैं तथा ये मारणान्तिक समुद्धात से समबहत होकर भी मरते हैं और अलमवहत होकर भी मरते हैं तथा ये उदूवृत्त होकर तिर्थञ्चों में और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। ऐसा उद्घतना प्रकरण प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युक्रान्तिकपद में वनस्पतिक्षायिकों का है, 'अह भंते ! सन्चपाणा जाब सनसत्ता' अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे अदन्त ! क्या समस्त प्राण, यावत्पदग्राह्यसमस्तभूत, समस्त મૂળમાં રહેલા જીની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તની હોય છે, અને Gथी मेथी दान नव वर्ष सुधीनी साय छे. 'समुग्घाया समोहया उव्वट्टणा य जहा उप्पलुद्देसे' समुद्धात, सभवत समुधातनी प्राप्ति, मन तना (બહાર કડવું) એ બધુ ઉત્પલ ઉદ્દેશામાં જે પ્રમાણે કહ્યું છે, તે જ પ્રમાણે, અહિયાં પણ સમજી લેવું. શાલી-વિગેરેના મૂળમાં રહેલા છેને વેદના કષાય, મારણાતિક એ ત્રણ સમુદ્દઘાત હોય છે, તથા તેઓ મારણાનિક સમુદ્રઘાતથી સમવહત થઈને પણ મરે છે, અને અસમવહત (સમુદુઘાત કર્યા વિના) પણ મરે છે. તથા તેઓ ઉદ્દવૃત્ત (નીકળીને) થઈને તિય“ચામાં અને મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રમાણેનું ઉદ્વર્તના પ્રકરણ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના छ"युति मा वनस्पतियिष्ठानु छे. 'मह भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता' गीतभस्वामी भुने मे पूछे छे 8-8 मगवन् सघणा प्राय,
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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