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________________ भगवती सूत्रे वर्णादिकच्छवासादिकमादारकानाहारक विरताविरत सक्रियाऽक्रियसनाविधवन्धक - संज्ञा - कषाय - वेद-वेदवन्धक सञ्संज्ञीन्द्रियपर्यन्तमुत्पन्नोदेशकत एव द्रष्टव्यम् । इन्द्रियविषये ते जीवा नो अनिन्द्रियाः किन्तु सेन्द्रिया एव । 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त । जीवाः 'साली वीही गोधूमजबजबजबगमुलगजीवेति कालो केवच्चिरं होंति' शालिनीहि गोधूमयवयवयवकमूलकजीवाद इति कालतः क्रियच्चिरं भवन्ति, शालिगोधूमादिजीवत्वेन कियत्कालपर्यन्तं ते जीवाः विष्टन्ती १ वि प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोरमा' - Ý वर्ण आदि के सम्बन्ध में, उच्छ्रवाल आदि के सम्बन्ध में, आहाएक अनाहारक के सम्बन्ध में, विरत अविरत के सम्बन्ध में, सक्रिय अक्रिय के सम्बन्ध में, खात आठ कर्म के बंध के सम्बन्ध में, संज्ञा के सम्बन्ध में, कषाय के सम्बन्ध में, वेद के सम्बन्ध में, वेदबंधक के सम्बन्ध में, संज्ञी और असंज्ञी के संबंध में यह सब कथन इन्द्रियपर्यन्त का ग्यारहवें शतक के उत्पलोदेशक से ही जानना चाहिये । इन्द्रिय विषय में कथन ऐसा करना चाहिये कि वे जीव अनिन्द्रिय नहीं होते हैं किन्तु इन्द्रिय सहित ही होते है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'साली वीही गोधूम जवजवजवगमूलगजीवेत्ति कालमो के चिरं होति' हे भदन्त ! शालि ब्रीहि, गेहूं यावत् जवजवजवक-यव यवक - इनके मूल के जीव कितने काल तक रहते हैं ? अर्थात् शालि, गोधूम आदि रूप से वे जीव कितने ✓ वर्षा विगेरेना समधुमां, उच्छवास वगेरेना सभधभां, मा.२४, અનાહારકના સંબંધમાં વિરત અવિરતના સુખધમાં, સક્રિય અક્રિયના સબધમાં, સાત, આઠ ક્રમના મધના સબંધમાં સ`જ્ઞાના સધમાં કષાયના સબધમાં વિક્રમ ધના "બધમાં સન્ની અને અસજ્ઞીના સબંધમાં આ તમામ ક્શન ઈન્દ્રિય સુધીનું તમામ કથન અગીયારમાં શતકના ઉત્પલ ઉદ્દેશાથી by सम बेवु. ઇંદ્રિય સબંધમાં આ પ્રમાણેનું કથન કહેવું જોઈએ કે જીવા અંદ્રિય ધગરના હાતા નથી, પણ ઇંદ્રિયવાળા જ હાય છે. हवे गौतम स्वाभी अलुने मे पूछे छे है- 'साली, वीही, गोधूम जव जवजवगमूलगजीवेत्ति कालओ केवच्चिर' होति' डे, लगवन् शादी, बीडी, ઘઉં યાવત્, જવ જેવકયુવક ચવક આ બધાના મૂળના થવા કેટલા કાળ સુધી રહે છે ? અર્થાત્ શાલી, ઘઉ' વિગેરે રૂપે તે જીવા કેટલા કાળ સુધી रहे छे ? मा प्रश्नना उत्तरभां अलु गौतम स्वामीने हे छे -' गायमा !
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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