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________________ प्रमियन्द्रिका टीका श०२० २०१० सू०४ नैरयिकाणां द्वादशादिसमर्जितत्वम् १४७ अप्कायिकादारभ्य वनस्पतिकायिकपर्यन्तागामपि चतुर्थपञ्चाविकल्पो-चतुरशीतिकै समर्जित ४ चतुरशीविश्च नो चतुरशीश च समर्जिताः५, इत्याकारको ज्ञेयाविति । 'वेइंदिया जाय वेमाणिया जहा नेरइया' द्वीन्द्रिया यावद्वैमानिका यथा नैरयिकाः, यथा नारका पश्चापि विकल्पविकल्पिशास्तथा द्वीन्द्रियादारभ्य वैमनिक पर्यन्तानामपि पञ्चविकल्पैः सनितरवं ज्ञेयमिति ! सिद्धाण पुच्छा' सिद्धाः खल इति पृच्छा. हे भदन्त ! सिद्धाः किं चतुरशीति समर्जिताः१, नो चतुरशीतिसमजिताः२, चतुरशीत्या नोचतुरशीत्या या समर्जिताः३, चतुरशीतिभिः समर्जिताः४ चतुरशीतिमिश्च नो चतुरशोत्या च वा समर्जिताः५ इति प्रश्नः । भगशनाहपंचम विकल्प कहे गये हैं उसी प्रकार से अपशायिक से लेकर वनस्पति कायिक तक के जीवों के भी चतुर्थ और पंचम विकल्प कहे गये हैं-वे चतुर्थ पंचम शिकल्प ये हैं-'चतुरशीतिकै लजिता ४, चतुरशीतिकैश्च नो चतुरशीत्या च ललिताः 'इंदिया जाय माणिया जहा नेरइया' जिस प्रकार चतुरशीति प्रकरण में नैरपिकों को पांचों विकल्पवाला प्रकट कियागया है उसी प्रकार से द्वीन्द्रिय से लेकर वैमानिक तक के भी जीवों को पांचों विकल्पोधाला जानना चाहिए सिद्धाणं पुच्छा' अब गौतम प्रभु से पूछते हैं हे भदन्त ! सिद्ध जीव क्या चतुरशीति ले समर्जित होते हैं। या नो चतुरशीति से समजित होते हैं २ या एक चतुरशीति और एक नो चतुरशीतिले सममित होते हैं ३ या अनेक चतुरशीति से समर्जित होते हैं या अनेक चतुरशीति से और एक नो चतुरशीति से समर्जित होते જીને ચે અને પાંચમે વિકલ્પ કહ્યો છે, એજ રીતે અષ્કાયિકથી લઇને વનસ્પતિકાયિક સુધીના જેને પણ ચોથો અને પાંચમે વિકલ્પ કહ્યો છે. તે योथी मने पाया वि५ मा प्रभारी छ.-'चतुरशीतिकैः समर्जिताः४, चतुर. शोतिकैश्च नो चतुरशीत्या च समर्जिताः' मने यार्याशीथा समत डाय छे. ४ मन यायाशीथी मने से न यायाशीथा समत डाय छे. ५ 'वेइंदिया जाव बेमाणिया जहा नेरइया' २ प्रमाणे यार्याशी समतभा नारકીને પાંચ વિકવાળા કહ્યા છે, એ જ રીતે બે ઈન્દ્રિય થી લઈને વિમાનિક સુધીના જીવ પણ પાયે વિકલાવાળા સમજવા. सिद्धा णं पुछा' के गीतमाभी प्रभुने मे पूछे छ' - सावन સિદ્ધ શું ચર્યાશી સમજીત હોય છે? અથવા ને ચર્યાશી સમજી હોય છે? અથવા એક ચર્યાશી અને એક ને ચોર્યાશી સમજત હોય છે?૩ અથવા અનેક ચોર્યાશી સમજીત હોય છે? અથવા અનેક ચર્યાશીથી અને એક ને ચોર્યાશીથી સમજીત હોય છે? ૫, આ રીતના
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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