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________________ १७६ भगवतीसूत्रे 'पुढवीकाइया नो वारसममज्जिया' पृथिवीकायका जीवाः नो द्वादशसमर्जिताः नो-नैव · द्वादशकेन समनिता भवन्ति१, 'नो नोवारससमब्जियार' नो नो द्वादशसमर्जिताः पृथिवीकायिका नो द्वादशसमर्जिता अपि न भवन्तीतिर । 'नो वारसरण य नो वारसरण य समज्जिया३' नो-नवा द्वादशकेन च नोवदाशकेन. च समर्जिता भवन्ति३ । अब भङ्गत्रयस्य निषेधः। किन्तु 'बारसहि समज्जिया' द्वादशकै समर्जिताः, अनेकाभिदिशसंख्यामा एकसमये सहैव जायमानत्वात. द्वादशकैः समर्जिताः कथ्यन्ते । 'वारसेहि य नोवारसएण य समज्जिया वि' द्वादशकैश्च नोद्वादशकेन च समर्जिता अपि, अनेकाभिदिशसंख्यामिस्त्था नो द्वादशकेन च समर्जिता भवन्ति पृथिवीकायिका जीवाः । अत्र प्रथम द्वितीयगौतम ले ऐसा कहते हैं कि हे गौतम ! 'पुढ बीकाइया नो धारलसम समज्जिया १' पृथिवीकायिक द्वादशा समर्जित.नहीं होते हैं १ 'नो नो पारसलमजिजया' नो द्वादशक समित नहीं भी होते हैं २ 'नो बारस. एण य नोधारसरण थ समज्जिया३' और एक द्वादश एवं एक नो बादशक समर्जित नहीं होते हैं। इस प्रकार के इन तीन भङ्गों का यहां निषेध है। वे पृथिवीकायिक जीव 'पारलएहि लमज्जिया' अनेक द्वादशों से समर्जित होते हैं -अर्थात् एक समय में अनेक १२ की संख्या में ये साथ लाथ उत्पन्न हो जाते हैं. इन्हें, इसलिये अनेक द्वादशों से समर्जित कहा गया है तथा-'बारसेहि य नो बारलएण य समजिया. वि' ये पृथिवीकायिक जीव अनेक द्वादशों की संख्या से एक समय में. उत्पन्न हो जाते हैं तथा नो द्वादशक से भी उत्पन्न हो जाते हैं-इसलिये: ये अनेक द्वादश संख्याओं से और एक नो द्वादशक से, समर्जित भी है गौतम! 'पुढवीकाइया नो वारससमन्जिया' पृथ्वीजयि द्वादश समत डात नथी १ 'नो नो बारससमज्जिया' नावासमत :डात नथी २ 'नो बारसरण य नो बारसएणय समज्जियाई' भ०१ मे द्वादश भने ४ નો દ્વાદશથી સમજીત હોતા નથી આ રીતે. આ ત્રણે ભંગેના તેઓમાં निध अरेस छ, तथा ते पृथ्वी थियो 'बारसेहि समज्जिया' भने દ્વાદશાથી સમજીત હોય છે. અર્થાત એક, સમયમાં અનેક ૧૨ બારની સંખ્યામાં તેઓ એક સાથે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તેથી તેઓને અનેક પ્રાદशाथी सभत हा छ. तथा 'वारसेहिाय नो बारसएण य समज्जिया कि પૃથ્વીકાયિક જીવે અનેક દ્વાદશોની સંvયાથી એક સમયમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તથા ને દ્વાદશથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી તેઓ અનેક દ્વાદશની संभ्यासाथी मने, सेना वाशथी पर समत- वामां आया 2.
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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