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________________ १६० भगवती सूत्रे काइया' एवं यावद् वनस्पतिकायिकानां जीवानामल्पबहुत्रमवगन्तवम् यथा पृथिवी का थिकै केन्द्रियजीवानामल्पबहुत्वमुक्तम् तथैवापकायिक तेजस्कायिक वायुः कायिकवनस्पतिकायिकै केन्द्रियजीवानाम् अल्पबहुत्वमवगन्तव्यम् पट्कैः समजिवनस्पतिकायिकाः सर्वस्तोकाः पटुकैश्च नो पट्केन च समर्जिता वनस्पतिकायिकाः पूर्वपेक्षया संख्यातगुणा अधिका भवन्ति । एवमेव अकायिक तेजस्कायिकवायुकायिकजीवानामपि अल्पबहुत्वमवगन्तव्यम् | 'वेइंदियाणं जाव वेमा. णियाणं जहा नेरइयाणं' द्वीन्द्रियाणां यावद्वैमानिकानाम् यथा नैरयिकाणाम् द्वीन्द्रियजीवादारभ्य वैमानिकपर्यन्तानां पदूकादिममर्जितानाम् अल्पत्रहुरवं स्सइकाइयाणं' इसी प्रकार से यावत् वनस्पतिकायिक जीवों का अल्प बहुत्व जानना चाहिये अर्थात् जिस प्रकार से पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय जीवों का अल्प बहुत्व कहा गया है उसी प्रकार से अपकायिक, तेजकायिक वायुकायिक एवं वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियजीवों का भी अल्प बहुत्व जानना चाहिये इनमें अनेक षट्कों से समर्जित- अनेक - ६ की संख्या में उत्पन्न हुए वनस्पतिकाधिक जीव सर्व से कम हैं और जो अनेक षट्कों से एवं एक नो षट्क से समर्जित- एक से लेकर पांच की संख्या में उत्पन्न हुए-वनस्पति कायिक जीव हैं, वे पूर्व की अपेक्षा संख्यातगुणें अधिक होते हैं इसी प्रकार का अल्पयत्य अकाधिक तेजस्कायिक एवं वायुकायिक जीवों का भी जानना चाहिये 'बेइंदिया पां जाव वैमाणियाणं जहा नेरइयाण" तथा-द्वीन्द्रिय से लेकर वैमानिक तक के जो पट्क समर्जित जीव हैं उनका अल्प बहुत्व नारक जीव के અને બહુપ સમજવું, અર્થાત્ જે પ્રમ શું પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય જીવાનુ અલ્પ મહુપણુ કહ્યુ છે, એજ રીતે અાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એક ઈન્દ્રિયવાળા જીવાનુ પણ અલ્પ ખડુંપણુ સમજી લેવું તેમાં અનેક ષટ્કાથી સમત-અનેક ષટ્કની સખ્યામાં ઉત્પન્ન થયેલા વનસ્પતિકાયિક જીવા સત્રથી ક્રમ-અપ છે. અને જે અનેક ષટ્કાથી અને એક ના ષટ્કથી સમજી ત-એકથી લઈને પાંચ સુધીની સખ્ય માં ઉત્પન્ન થયેલ વનસ્પતિકાયિક જીવા છે, તે પહેલાંની અપેક્ષાથી સખ્યાતગણુા અધિક હાય છે. આજ પ્રમાણેનું અલ્પ અહુપણુ અાયિક, તેજસ્કાયિક, અને वायुअयि भवतुं पशु समभवु'. 'वेइंदियाणं जाव वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं' તથા એ ઇંદ્રિયાથી લઇને વૈમાનિક સુધીના ષટ્ક સમત જે જીવા છે,
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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