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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सु०३ नैरयिकादीनां षटकादिसमर्जितत्वम् १५१ एवं यावत् स्तनितकुमाराः एवम् यथा नारकाः पट्कापञ्चविकल्पैः समर्जिता स्तथैव असुरकुमारादारभ्य स्तनितकुपारपर्यन्ताः षट्कपश्चविकल्पैः समर्जिता एवेति भावः । एकेन्द्रियाणां त्वसंख्यातानामेव प्रवेशनात् पट्कैः समर्जिता स्तथा पटके नौ पट्केन च समनिता इति विकल्पद्वयस्यैव संभव इत्याशयेनाह-'पुढचीकाइयाण' इत्यादि, 'पुढवीकाइयाणं पुन्छ।' पृथिवीकायिकानां पृच्छा, हे भदन्त ! पृथिवीकायकाः किं षट्कसमर्जिताः १, नो षट्कसमर्जिताः २, पटकेन च समर्जिताः ३, षट्कैः समर्जिताः ४, षट्कैश्च नो षट्केन च समानता ५ किम् ? इति प्रश्ना, से समर्जित, तथा अनेक घटकों से एवं एक नो षट्क से समर्जित भी हैं । 'एवं जाव धणियकुमारा' इसी प्रकार से इनका कथन यावत् स्तनितकुमारों तक में कर लेना चाहिये अर्थात् जिस प्रकार से षट्क एवं नो षट्क आदि पांच विकल्पों से समर्जित नारक कहे गये हैं, उसी प्रकार से असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमारान्त जीव षटक एवं नो षट्क आदि पांच विकल्पों से समर्जित ही होते हैं ऐसा जानना चाहिये। एकेन्द्रिय जीव असंख्यात की अवस्था में ही प्रवेश करते हैं इसलिये वे अनेक षटकों से समर्जित तथा अनेक षटकों से एवं एक नो पटक से समर्जित होते हैं अतः यहां इन दो विकल्पों का ही प्रभाव है इसी आशय को लेकर अब सूत्रकार इसी विषय को प्रश्नोत्तर के रूप में स्पष्ट करते हैं-गौतम प्रभु से पूछते है-'पढवीकाइयाण पुच्छा' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या षटकसमर्जित होते हैं ? या नो षटक समर्जित होते हैं या एक षट्क से और एक नो पटक से समति होते हैं या अनेक षट्कों से समर्जित होते हैं४ या अनेक षट्कों से 'एवं जाव थणियकुमारा' मेशततमा थन यावत् स्तनितभारी सुधीमा સમજી લેવું. અર્થાત જે રીતે ષટ્રક અને મેં ષક વિગેરે પાંચ વિકલપિથી નારકોને સમજીત (ઉત્પન્ન થનારા) કહા છે, એજ રીતે અસુરકુમારથી લઈને સ્વનિતકુમાર સુધીના છ ષક અને ન ષક વિગેરે પાંચવિકલ્પથી સમજીત જ હોય છે, તેમ સમજી લેવું એકેન્દ્રિય છે અસંખ્યાત અવસ્થામાં જ પ્રવેશ કરે છે, તેથી તેઓ અનેક પકેથી સમજીત તથા અનેક પકેથી અને એક ને ષકથી સમજીત હોય છે. તેથી અહિયાં આ બે વિકલ્પોને જ સંભવ છે. આજ ભાવ લઈને હવે સૂત્રકાર આ વિષયને પ્રશ્નોત્તરના ३५थी २५०८ ४रे छ. गौतमस्वामी प्रभुने पूछे छे -'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' હે ભગવન પૃથ્વીકાયિક જીવે શું ષક સમેજીત હોય છે? ૧ અથવા ને ષ સમજીત હોય છે? ૨ અથવા એક ષકથી અને એક ને ષકથી સમજીત હોય છે?, અથવા અનેક ષથી સમર્થત હોય છે ? ૪ અથવા
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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