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________________ १०४ भगवतीचे 'जंघाचारणस्स णं भंते !' जंघाचारणस्य खलु भदन्त ! 'उडु केवए गइविसए पनत्ते' अयं कियान-कीदृशो गतिमिपयो-गमनक्षेत्र मज्ञप्तम् इति मनः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'से णं इभी एगेणं उप्पाएणं' स जंघाचारण खल्लु इतः एकेन उत्पातेन 'पंडगवणे समोसरण करेइ पण्डकाने समवसरणं करोति-पण्डकवने स्थितो भवति बत्र गच्छतीश्यर्थः, 'करिता' कृत्वा 'हिं चेझ्याई वंदई तत्र-पण्डकाने चैत्यानि वन्दते 'वंदित्ता' तत्र चत्यानि वन्दिता 'ओ पडिनियत्तमाणे वता-पण्डकानात् प्रतिनिवर्तमानः 'विवीएण उप्पारणे द्वितीयेन उत्पातेन 'नंदनवणे समोसरणं करेई नन्दनवने समवसरणं करोति, 'करिता' कृत्या-नन्दनवने गत्वा 'तहि चेहयाई वंद' तत्र-नन्दनवने चैत्यानि वन्दते 'पंदित्ता इह आगच्छई' तत्र-नन्दनवने चैत्यानि वन्दिया इह अब गौतमस्वामी प्रभु से 'जंघाचारण की गति का ऊर्ध्व में कितना विषयक्षेत्र है' ऐसा पूछते हैं-'जंघाचारणस्त णं भंते ! उडु केवाए गइ. विसए पनत्त इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा! से णं इभो एगेणं उपाएणं पंडकवणे समोसरणं करे' हे गौतम! जंघाचारण अपने स्थान से एक उत्पात में पाण्डुकवन में पहुंच जाता है, 'करित्ता तहिं घेड्याइं वंदइ' वहां पहुंचकर वह चैत्यों की-जिनेन्द्र देव के श्रुत भादि ज्ञानों की वन्दना करता है, वंदित्ता तो पडिनियत्तमाणे विती एणं उप्पारणं नंदणवणे समोसरणं करेइ' वन्दना करके फिर वहां से लौटते समय द्वितीय उत्पात से नन्दनवन में पहुंचता है 'करित्ता वहाँ पहुंचकर वह जिनेन्द्र देवों के श्रुनज्ञान आदि रूप चस्यों की वन्दना करता है 'बंदित्ता०' वन्दना करके फिर वह अपनी जगह पर आ जाता હવે ગૌતમસ્વામી જંઘ ચારણ મુનિની ગતિ ઉવલેકમાં કેટલા વિષય क्षेत्रनी छे, गजुवा प्रसुने पछे छे -जंघापारणस्स णं भंते ! उड्ढे केवइए गइविसए पण्णत्ते' मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ गोयमा ! से गं इस एगेणं उप्पारणं पंडकवणे समोसरणं करेइ' 8 गौतम! या वाताना स्थानयी ४ उत्पातथा पाहुचनमा ५iयी नय छे. 'करित्ता तहिं चेझ्याई वंदई' त्यां पायान ते येत्याने-नेन्द्र हेवन श्रुत विगेरे ज्ञानानी ना अरे छ. 'वदित्ता तओ पडिनियत्तमाणे वितीएणं उत्पादणं नंदणवणे समोवसरणं જો વંદના કરીને તે પછી ત્યાંથી પાછા ફરતી વખતે બીજા ઉત્પાતથી नहनवनमा पांच छ. 'करित्ता०' chi पाथी२ ते नेन्द्रवाना श्रुत. ज्ञान३५ अत्यानी ना रे छे. वदित्वा०' बना 3रीन ते पछी पोताना
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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