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________________ भगवतीसत्रे पत्नत्ते' तिर्यक कियान् गतिविपयो-गमनक्षेनम् प्राप्तः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'से णं इओ एगेण उपाएण' स जंघाचारणः खलु इतः अस्मात्-स्थानात् एकेनोत्पातेन 'रुयगवरे दीवे समोसरणं करेई' रुचकवर नामके द्वीपे त्रयोदर्श समवसरणं स्थिति करोति तत्र स्थितो भवति तत्र गच्छतीत्यर्थः 'करित्ता' कृत्वा रुचकवरद्वीपे समवसरण कृस्या सत्र गत्वा इत्यर्थः, 'तहिं चेइयाई बंदई तत्र-चैत्यानि-ज्ञानानि यदेव भगवता प्रतिपादितं तत्सत्य मित्येव श्रुतादिज्ञानानि वन्दते 'वंदित्ता' वन्दित्वा 'तओ पडिनियत्तमाणे' ततोरुचकवरद्वीपात् प्रतिनिर्तिमानः 'वितीएणं उप्पारण' द्वितीयेन उत्पातेन 'नंदीसरवरदीवे समोसरणं करेई' नन्दीश्वरवरद्वीपे समवसरणं स्थिति करोति नन्दीश्वरद्वीपं चारण की सामान्य रूप से जो शीघ्रगति आपने प्रगट की है वह तो मैंने जान ली है-अब मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि जंघाचारणमुनि कि तिर्थग्गति का विषय कैसा है ? अर्थात् उनका तिर्थग्गमन क्षेत्र कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयना ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं' हे गौतम ! वह जंघाचारणमुनि स्वाधिष्ठित स्थान से एक उत्पात द्वारा १३ ३ रुचकवर नामके द्वीप में स्थित होतो है 'करित्ता तहि चेहयाई वंद' वहां स्थिर होकर-पहुंचकर वह इस भावना से कि जो कुछ भगवान् जिनेन्द्र ने कहा हैं वह सत्य है उन जिनेन्द्रों के श्रुन आदि ज्ञानों की बन्दना करता है। 'वंदित्ता तो पडिनियत्तमाणे वन्दना करके फिर वह यहां से लौटता हुआ 'पितीएणं उप्पाएणं' छित्तीय उत्पात से-'नंदीसरवरदीचे समोसरणं करेइ नन्दीश्वर नामके ચારણની સામાન્ય રૂપથી જે શીધ્રગતિ આપે પ્રગટ કરી છે, તે મેં જાણું છે હવે આપની પાસે એ જાણવા ઈચ્છા રાખું છું કે-જંઘાચારણમુનિની તિગતિને વિષય કેવો છે? અર્થાત તેઓનું તિર્યગમનક્ષેત્ર કેટલું છે? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४९ छे ४-'गोयमा । से गं इओ एगेणं उप्पारण' હૈ ગૌતમ! તે જંઘાચારણ મુનિ પિતાના થાનથી એક ઉત્પાતથી ૧૩ તેરમાં ३२:१२ दीपभi rश छ. 'करित्ता तहिं चेइयाई वंदइ' लive । એ ભાવનાથી કે જીનેન્દ્ર ભગવાને જે કાંઈ કહ્યું છે, તે સત્ય છે. તે લગपानना श्रुतज्ञान विगैरेनी ना ४२ छ, मन वंदित्ता तओ पडिनियत्तमाणे' बना रीने ५छी थी पाछ। वजी 'बितीएणं उप्पाएणं' मीना हत्यातथी नंदीसरवरदीवे समोसरणं करेइ' नन्हीवर नामना मामा दीपमा
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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