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________________ १०० भगवती सूत्रे 'जाव किंचि सिसेसाहिए परिवखेवेण पष्णत्ते' यावत् किञ्चिद्विशेपाधिकः परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः, जम्बूद्वीपपरिधिपरिमाणं पूर्व प्रदर्शितमेवेति । पुनश्च - 'देवेणं महिड्रिए जाव महासोक्खे' देवः खलु महर्द्धिको महायशा महाबलो महाद्युतिको महासौख्यः 'जाव इणामेव चिकट्टु' यावदिदमेवेति कृत्वा -- यावत्तावता कालेन साम्प्रतमेव आगच्छामीति कथयित्वा 'केवलकपं जंबुद्दीवं दीवं विद्दि अच्छरानिवाए हिं' केवलकल्पम् - सम्पूर्णम् जम्बूद्वीपं द्वीपम् त्रिभिरप्सरोनिपातैरिति, अयमर्थ:- अप्सरोनिपातः अप्सरसोऽवतरणम्, तस्य कालः अतिसूक्ष्मो भवेदित्यनेन काल उपमितः, स च चप्पुटिकामात्र इति तिसृभिः चप्पुटिकाभिः, त्रिचप्पुटिकापरिमितका लेनेत्यर्थः । इति पर्यन्तं विद्याचारणप्रकरणं वाच्यम्, वैशिष्टचकि कोई महाऋद्विवाला, यावत् महायशवाला, महाघलवाला, महाद्युतिवाला और महासुखवाला देव पूर्वोक्त प्रमाण की परिधिवाले इस जम्बूद्वीप की तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है - इतने समय में तीन बार प्रदक्षिणा करके वापिस अपने स्थान पर आ जाता है, ऐसी शीघ्रगति विद्याचारण की होती है इत्यादि सो वही सव कथन जंघाचारण की शीघ्रगति को प्रगट करने के लिये यहां पर कहना चाहिये यहां 'अप्सरोनिपात' का तात्पर्य चुटकी से है अप्सरा के अथतरण का काल अतिसूक्ष्म होता है इसीसे काल को यहां उपमित किया है और इसे एक चुटकीरूप कहा गया है पूर्वोक्त इस कथन से जंघा - चारण के समय में जो कुछ विशेषता है वह 'नवरं' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रगट की गई है। और वह इस प्रकार से कही गई है कि विद्याधारण के द्वारा इस संपूर्ण जंबूद्रीप की प्रदक्षिणा जैसे तीन चुटकी बजाने જેમ કહેવામાં આવ્યુ છે, કે કાઇ મહાઋદ્ધિવાળા દેવ, યાવત્—મહાયશવાળા મહાબળવાળા, મહાદ્યુતિવાળા અને મહાસુખવાળા દેવ પૂર્વોક્તપ્રમાણુની પરિધિવાળા આ જ મૂઢીપી ત્રણ ચપટી વગાડવામાં જેટલે સમય લાગે તેટલા સમયમાં ત્રણવાર પ્રદક્ષિણા કરીને પાછા પેાતાના સ્થાને આવી જાય छे, मेवी शीघ्रगति विद्यायारशुनी होय छे. त्याहि ते सधणु उथन धा याराशुनी शीघ्रगतिने अगट १२वा अहिं समक सेवु मडियां 'अप्सरोનિત'નું તાત્પ ચપટીથી છે. અપ્સરાના અવતરણના સમય અત્યંત સૂક્ષ્મ હાય છે. તેથી અહિયાં કાળની ઉપમા આપી છે અને તેને એક ચપટી રૂપ કહેલ છે. પૂર્વોક્ત આ કથનથી જ ઘાચારણના સમય પ્રથનમાં જે કાંઈ વિશેષभाछे ते ‘नवर" विगेरे सूत्रपाठी प्रगट रेस छे अने ते या प्रभा] उडेस છે. કે વિદ્યાચારણ દ્વારા આ સપૂર્ણ જ બુદ્ધીપની પ્રદક્ષિણા જેમ ત્રણ ચપટી
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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