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________________ का टीका श०२० ३०९ सू०१ लब्धिमतः गत्यादिनिरूपणम् तस ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेड' म खलु यदि तस्य गमानागमन सम्बन्धिपापस्थानस्य आलोचित पतिक्रान्तो भवति आलोचनं प्रतिक्रमणं च करोति पापस्य प्रमार्जनेन चारित्राराधनस्य संपादनादिति भावः । ' से तस्य ठाणस्स' एतस्यायं भावः - लब्ध्युपजीवनं खलु प्रमादः, तत्र चासेविते ममादे आलोचनाया अभावे चारित्रस्य नैव आराधना भवति अपितु विराधना स्यात् । चारित्रविराधकथ न लभते चारित्राराधनादलमिति । यदप्युक्तं विद्याचारणस्य गमनमुत्पादद्वयेन आगमनं च एकेन उत्पादन जंघाचारणस्य गमनम् एकेनोपादेन भागमनं च द्वयोत्पादेन च तत्सर्व लब्धिश्वभाववत्वादिति । अथवा विद्याचारण ३५ स्थिति में उसके चारित्र की आराधना नहीं हो सकती है और यदि बह- ' तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते कालं करे०' उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण कर लेता है और फिर मर जाता है तो उसको आराधना होती है क्योंकि पाप के प्रमार्जन में चारित्र की आराधना का उसने संपादन कर लिया होता है 'से णं तस्स ठाणसं' इसका भाव ऐसा है - तब्धि को काम में लेना यह प्रमाद है इस प्रमाद के सेवन करने पर और उसकी आलोचना नहीं करने पर चारित्र की आराधना नहीं होती है अपि तु विराधना ही होती है चारित्र की विराधना करनेवाला व्यक्ति चारित्र की आराधना के फल को नहीं प्राप्त करता है तथा ऐसा जो कहा गया है कि विद्याचारण का गमन दो उत्पात से होता है और आगमन एक उत्पात से होता है, जंघाचारण का गमन एक उत्पात से और आगमन दो उत्पात से होता है सोयह माराधना यर्ध शती नथी भने ले ते- 'तरस ठाणास आलोइयपडि મારું ૬૦' તે સ્થાનની આલેાચના અને પ્રતિકમણુ કરે છે અને પછી મરી જાય તે તેને આરાધના થાય છે અર્થાત્ તેમે આરાધક થાય છે કેમકે પાપના ધાવામાં ચારિત્રની આરાધના તેણે મેળવી લીધી હેય છે. કે છાં સન્ન ठाणम्स' तेनेो भार से है है-धि अभावी ते प्रभाह का प्रभार સેવન કરવાથી અને તેની આલેચા ન કરવાથી ચારિત્રની આરાધના થતી નથી પરંતુ વિરાધના જ થાય છૅ, ચારિત્રની વિશ્વધના કરવાવાળી વ્યક્તિ ચાત્રિની આરાધનાના ફળને પ્રાપ્ત કરતા નથી. તથા એવું જે કહ્યું છે ઃવિદ્યાચારણનુ ગમન એ ઉત્પાતથી થાય છે અને આગમન રે ઉપની થાય છે, જઘાચારણનુ ગમન એક સાર્યો અને અમન કે ઉત્પાતથી
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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