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________________ का टोकाश० २० उ० ८ ० २ कालिकयुतस्य विच्छेदादिनि०७३ इर्ण उसमस अरओ कोसलियस्स जिणपरियाए ' यावत्क' खल ऋमस्यातः कौशलिकस्य - कोशल देशोद्भवस्य जिनपर्यायः केवलिपर्यायः स च वर्षसहस्रन्यूनं पूर्वलक्षम् 'पत्रइयाई संखेज्जाई' एतावत्कानि संख्यातानि वर्षाणि 'आगमेस्माणं' आगामिष्यतां तीर्थंकराणाम् मध्यात् चरिमतित्ययरस्त 'चरमतीर्थकरस्य, 'तित्ये अणुसज्जि तीर्थम् अनु यति अनागतान्तिमतीर्थकरस्य तीर्थं वर्षसहस्र-यूनं पूर्वलक्ष स्थास्तोत्रम् | तीर्थप्रस्तावदेव इदमा- ' तिथं मंते! तित्यं तित्ययरे वित्यं' तीर्थं भवती तीर्थङ्क वा तीर्थम् हे भदन्त तीर्थे चतुर्विधसं रूपं तीर्थम्-तीर्थशब्दवाच्यम् अथवा तीर्थकरः- वीर्थशब्दवाच्य इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा ' इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोग्रमा ! जावहएणं उसभस्म अरहओ कोस जणपरियाए०' हे गौतम! कोशल देशोद्भव ऋषभ अरिहन्त की केवलिपर्याय जिसने कालतक की है-अर्थात् कोशल देशोद्रव ऋ अरिहन्त श्री केवलिपर्याय एकहजार वर्ष कम एकलाख पूर्व की है इतने ही संख्यात वर्षों तक आगामी तीर्थंकरों में के अन्तिम तीर्थकर का तीर्थ रहेगा अर्थात् अनागत अन्तिम तीर्थकर का तीर्थ एक हजार वर्षम एक लाख पूर्व तक रहेगा चौरासी लाग्व वर्ष का एक पूवाङ्ग होता है और ८४ लाख पूर्वाङ्ग का एक पूर्व होता है ऐसे एक लाख पूर्व तक उनका तीर्य रहेगा, इस एक लाख पूर्व में एक हजार वर्ष कम जो किये गये हैं वे अस्थावस्था के किये गये हैं । तीर्थ के प्रकरण से अप गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा भी पूछते हैं- 'तित्यं भंते । तिस्थं तित्थयरे तित्थं' हे भदन्त । तीर्थ-चतुर्विध संघरूपतीर्थ तीर्थ शब्द का वाच्य है ? या तीर्थकर तीर्थ शब्द का वाच्य है ? उत्तर में प्रभु कहते रहेशे १ मा प्रश्नना उत्तरछे है- 'गोगमा ! जावद्दवणं उस भरत अरज कोसलियास जिणपरियार' हे गोतम । शस हेाभां त्यन्न થયેલા ઋષભ ભગવાનની કેલીપર્યાય જેટલા કાળ સુધીની છે- અર્થાત્ દાશા દેશમાં થયેલા ાત્ર ભગવાનની ફેલીપર્યાય એક રબર વર્ષ ક્રમ એકલાખ પૂર્વ સુધી રહેશે. ૮૪ ચેાર્યાગી લાખ વર્ષનું એક પૂર્વગ થાય છે, અને ૮૪ ચાર્યાશી લાખ પૂર્વાંગનું એક પૂર્વ થાય છે. એવા એક લાખ પૂર્વ સુધી તેઓનું તીથ પ્રતિત રહેશે. આ એક લાખ પૂત્ર એક સ્તર વધ જે કમ કથા છે, તે છાસ્થ અવસ્થા માટે કહેવામાં આવેલ છે. તાના पारधी हवे गोतमस्वामी अनुने मेवु पूरे हे हे- 'दित्यं भवे ! नित्य' तिथयति' से लगवन् तीर्थ-पिंध तीर्थ से नार्थ शु વાગ્ય છે કે તીય કર એ તીય શબ્દ વાચ્ય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રત્યુ
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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