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________________ प्रमयन्द्रिका टीका श०१८ उ० ६ सू० २ परमाणौ वर्णादिनिरूपणम् ७७ एगरसे सिय दुरसे' स्यात् एकरसः द्विपदेशिकः स्कन्धः, स्यात् द्विरसः द्विपदेशिकः स्कन्धः 'सिय दुफासे' स्यात् द्विस्पर्शः स्कन्धः, एक स्पर्शवान स्कन्धस्तु कदाचिदपि न स्यात् यतः स्कन्धोत्पादके एकस्मिन् परमाणो कारणभूते अविरुद्धस्पर्शद्वयसत्वेन कार्यपि स्पर्शद्वयस्यैव संभवः, 'कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्ते' इति नियमात । अत्रापि एकप्रदेशिकस्यैव शीतस्निग्धत्वादिभावेन त एन चत्वारो विकल्पा भवन्ति । 'सिय तिफासे' स्यात् त्रिस्पर्शः स्कन्धः, इह चत्वारो विकल्पा भवन्ति तथाहि-प्रदेशद्वयस्यापि शीतभावे एकस्य च तत्र स्निग्धभावात् द्वितीय और कदाचित् दो गंध गुणवाला भी होता है । 'लिय एगरसे सियदूरसे' कदाचित् वह एकरसवाला होता है । और कदाचित् दो रसोंवाला भी होता है। 'सियदुफासे' कदाचित् यह दो स्पर्शवाला होता है एक स्पर्शबाला पुद्गल कभी भी नहीं होता है । क्योंकि स्कन्धोत्पादक एक परमाणु में अविरुद्धस्पर्शद्वय की सत्ता होती है । अतः कारणभूत परमाणुद्रय से जायमान स्कन्ध में भी स्पर्शद्वय का ही संभव है। क्योंकि 'कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्ते' ऐसा नियम है। जिस प्रकार से एक परमाणु में शीतस्निग्ध आदि के सद्भाव से चार विकल्प पहिले प्रकट किये गये हैं वे ही चार विकल्प यहां पर भी होते हैं। 'सिय तिफाले' कदाचित् वह तीन स्पर्शे वाला होता है यहां चार विकल्प होते हैं-जैसे दोनों प्रदेशों में शीतस्पर्श भी हो सकता है। स्निग्धस्पर्श भी हो सकता है। और रुक्षस्पर्श भी हो सकता है। इस प्रकार दोनों प्रदेशों में शीतस्पर्श के साथ एक परमाणु के स्निग्धभाव पर डाय छे. "सिय एगरसे खिय दूरसे" हाथित् ते मे २सपा ५५] डाय छ भने हाथित् मे २सोपा ५ जय छे. सिय दुफ'से" हाय त બે સ્પર્શવાળ હોય છે. એક સ્પર્શવાળે ઔધ કેઈપણ સમયે થતો નથી. કેમ કે-ધને ઉત્પન્ન કરનાર એક પરમાણુમાં વિરૂદ્ધ નહી તેવા બે સ્પર્શની સત્તા હોય છે. તેથી કારણરૂપ બે પરમાણુથી થવાવાળા કંધમાં પણ બે સ્પર્શ १ सय छे. भ3-"कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्दे" गुणे :ગુણેને પ્રાપ્ત કરે છે એ પ્રમાણે નિયમ છે. જે રીતે એક પરમાણુમાં શીત, સ્નિગ્ધ વિગેરેના સદૂભાવથી પહેલા या वि८५ तास छे. ते यार ८ महियां ५५ थाय छे. "सिय ति फासे" हायित् त्रय स्वामी जय छे. मडियां यार विजन છે. જેવી રીતે બનને પ્રદેશમાં શીતસ્પર્શ પણ થઈ શકે છે, નિગ્ય પશ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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