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________________ sheeran टीका श० २० उ. ५ ० १० परमाणुप्रकारनिरूपणम् अदाहा:, यथाऽग्निना काष्ठादि दाने सावयवत्वात् न तथा परमाणुवत्यादिना दग्धुं शक्योऽतिसूक्ष्मवादतोऽदाद्य इति कथ्यने, अनएव 'अगेज्झे' अग्रयः अतिक्ष्मादित्वात् हस्तादिना चक्षुरादिना वा ग्रहीतुमयोग्यत्वात्, अग्रन्ध इति कथ्यते सावयवस्य स्थूलत्वं प्राप्तस्यैव पदार्थस्य हस्तादिना ग्रहणं चक्षुरादिना वा ग्रहणं जायतेऽयं तु परमाणुरतिमुक्ष्मत्वादवयवरहितत्वादच कथमपि ग्रहीतुं योग्य न भवतीत्यतोऽग्राह्य इति कथ्यते । द्रव्यपरमाणु विभागशो दर्शयित्वा तदनन्तरं क्षेत्र परमाणुरूपं सविभागं दर्शयितुमाह - 'खेतपरमाणू ' उत्पादि 'खे तपरमाणू णं भंते ! काविहे पत्ते' क्षेत्रपरमाणुः खलु भदन्त । कतिविधः प्रज्ञप्तः - कति कारकः कथित इति मनः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा ! चन्हे पन्नत्ते' हे गौतम | क्षेत्रपरमाणुश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः । मकारभेदमेव होने से काष्ठादिक पदार्थ ही अग्नि द्वारा दाह्य (जलनेवाला) होते हैं अवयव रहित होने से परमाणु दाह्य नहीं हो सकता है 'अगेज्ने' इसी कारण इसे अग्राह्य कहा गया है, हाथ या वक्षुरादिक इन्द्रियां न इसे ग्रहण कर सकती है, और न इसे देख ही सकती हैं, इसलिये इसे अग्राह्य कहा है सावयव (अवयवसहित ) पदार्थ का ही जो कि स्थूल भाव को प्राप्त होता है हाथ आदि द्वारा ग्रहण होता है और चक्षुआदि इन्द्रियों द्वारा उसका देखना आदि होता है परन्तु परमाणु तो ऐसा होता नहीं है इसलिये अतिसूक्ष्म और अवयवरहित होने के कारण ही वह अग्राह्य होता है, 'खेत्त परमाणू णं भंते! कहविहे पगते' हे भदन्त ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? इस गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं - 'गोयमा । चविहे पन्नत्ते' भरयुधी तेने मलेद्य वामां आवे छे. 'अहज्जे ' अवयव सहित सेवाधी કાઠલાકડા વિગેરે પદ્યાર્થી જ અગ્નિથી ખાળી શકાય છે. અવયવ વગરના होवाथी परमाणु मजी शमता नथी. 'अगेज्झे' से अरधी तेने अग्राद्य કહેલ છે. હાથ અગર ચક્ષુ વિગેરે ઇન્દ્રિયે તેને ગ્રહણ કરી શકતા નથી તેમ તેને જોઇ શકતા નથી તેથી તેને અગ્ર હા કહેલ છે. અવયવ સાથે પદાર્થીના જ કે જે સ્થૂલ ભાવ પામે છે. તેનું હાથ વિગેરેથી ગ્રહણુ કરાય છે. અને નેત્રાદ્ધિ ઇન્દ્રિયા વડે તેને જોવા વિગેરે થઇ શકે છે પરંતુ પરમાણુ તે। એવુ' હાતુ નથી તેથી અત્યંત સૂક્ષ્મ અને અવયવ વગરના હોવાને आरो ? ते अग्राह्य होय छे. 'खेत्तपरमाणू णं भते ! कवि पण्णत्ते ।' ભગવન્ ક્ષેત્રપરમાણુ કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभो अनु छे - 'गोयमा चउव्विहे पन्नत्ते' हे गौतम क्षेत्र परभा यार ९५१
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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