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________________ प्रमैयर्यान्द्रका टीका शं०२० उ.५ सू०१० परमाणुप्रकारनिरूपणम् इत्यादि, 'तं जहा' तथा 'दयपरमाणू १, खेत्तपरमाणु २ कालपरमाणु ३, भावपरमाणू ४' द्रव्यपरमाणुः १, क्षेत्रपरमाणुः २, कालपरमाणुः ३, मावपरमाणुरिति ४, तथा च द्रव्यक्षेत्रकालभाव भेदात् परमाणुश्चतुर्विध इति । एनेषु द्रनक्षेप मिलेगु चतुःपकारकेपु परमाणुषु द्रव्यपरमाणुः कीदृशः करिमकारश्चेति दर्शयितुमाह- द६ माणू' इत्यादि, 'दरपरमाणू णं भंते ! काविहे पन्नत्ते' द्रव्यपरमाणुः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गोजम ! चउबिहे पनत्ते' चतुर्विधः प्रज्ञप्तः द्रव्यपरमाणुः तत्र द्रव्यरूपः परमाणुईव्यपरमाणुः वर्णादिरूपयमविवक्षया एका परमाणुरेव द्रव्यपरमाणुशब्देन कथ्यते, यतोऽत्र केरलं द्रव्यस्यैव विवक्षा विद्यते, एक आकाशमदेशः क्षेत्रपरमाणुरिति कथ्यते । समयः कालपरमाणुरिति कथ्यते। खण्ड न हो सके वह परमाणु कहा गया है, यह परमाणु 'दधपरमाणू १, खेत्तपरमाणू २, कालपरनाणू ३, भावपरमाणू' द्रव्यपरमाणु, क्षेत्र. परमाणु, कालपरमाणु और भावपरमाणु के गेन से चार प्रकार का कहा है-इनमें जो द्रव्यपरमाणु है उसके विषय में गौतम ने पुनः प्रभु से ऐसा पूछा है कि-'दयपरमाणू ण मंते ! कविहे पन्नत्ते' हे भदन्त। द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है'ग.यमा' चबिहे पन्नत्ते' हे गौतम ! द्रव्यपरमाणु चार प्रकार का कहा गया हैं? द्रव्यरूप परमाणु का नाम द्रव्यपरमाणु है। इस द्रव्यपरमाणु में वर्णादिरूप धर्मों की विवक्षा नहीं हुई है, इसलिये एक परमाणु ही द्रव्यपरमाणु शब्द से गृहीत हुआ है । क्योंकि यहां केवल द्रव्य की ही विवक्षा हुई है । एक आमाशप्रदेश क्षेत्रपरमाणु कहा गया है। न तन ५२मा ४२वाम गावे छ,- परभाना 'दवपरमाणू१ खेत्त. परमाणू२ कालपरमाणू३ भावपरमाणू४' ०२५२भा क्षेत्र५२मा २ स. પરમાણુ અને ભાવપરમાણુના ભેદથી ચાર પ્રકારે છે. આમાં જે દ્રવ્યપરમાણુ છે તેના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે – 'दव्वपरमाणू णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' है सपन द्रव्य परमाना हो टमा हाले ? ! प्रशना उत्तरमा प्रमुछे -'गोयमा ! चविह पण्णत्ते' हे गौतम द्र०५ ५२मा यार ना अपामा माव्या . द्रव्य રૂપ પરમાણુનું નામ દ્રવ્ય પરમાણું છે. આ દિવ્ય પરમાણુમાં વદિ રૂપ ધર્મોની વિવક્ષા કરવામાં આવી નથી જેથી એક પરમાણુ જ રથ પરમાણુ શબ્દથી ગ્રહણ કરાયેલ છે. કેમકે અહિયાં કેવળ દ્રવ્યની જ વિવફા થઈ છે. એક આકાશ પ્રદેશને ક્ષેત્ર પરમાણુ કહેવામાં આવે છે. સમય ફાળ પરમાવા
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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