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________________ मंगवतीस्त्रे चत्वारो भङ्गा अभवन् एवं गुरुशीतोष्णबहुवचनान्तैश्चत्वारोऽभवन् , तदेवमेतेऽपि षोडश भङ्गाः, 'देसे कक्खडे देसे मउए देसा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एएवि सोलसभंगा कायदा' देशः कर्कशो देशो मृदुको देशाः गुरुकाः देशा लघुकाः देशः शीतो देश उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूक्षः, एतेऽपि षोडश भङ्गाः कर्तव्याः, गुरुलघूभ्यां बहुवचनान्ताभ्यामेते वचनान्त गुरुपद को लेकर हुए हैं, गुरु और उष्णपद में बहुवचनान्तता करके द्वितीय चतुष्क के ४ भंग हुए हैं, गुरु और शीतपद में बहुवचनान्तता करके तनीय चतुष्क के ४ भंग हुए हैं और गुरु, शीत और • उष्णपदों में बहुवचनान्तता करके चतुर्थ चतुष्क के चार अंग हुए हैं। इस प्रकार से ये पूर्वोक्त १६ भंग निष्पन्न हुए हैं। । 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसा गरुपा, देखा लहुया, देसे सीए, देसे उलिणे, देसे निद्धे, देखे लुक्खे-एएवि सोलल्लभंगा कायव्वा' एवं लघुपद में बहुवचनान्त करके जो १६ भंग धनते हैं वे इस प्रकार से हैं-एक देश में वह कर्कश, एकदेश में मृदु, अनेक देशों में गुरु, अनेक देशों में लघु, एकदेश शीत, एकदेश में उष्ण, एकदेश में स्निग्ध एवं एकदेश में रूक्ष हो सकता है, यह इस प्रकार के कथन का प्रथम भंग है, शेष १५ भंग और पूर्वोक्त पद्धति के अनुसार करना चाहिये इनकी विगत इस प्रकार से है-गुरु और लत्रुपद में बहुवचन करने से एवं शेषपदों में एकच पन करने से प्रथमचतुष्क का प्रथम भंग होता है, इसका वितीय भंग इस प्रकार से है-'देशः कर्कशः, देशा ચાર ભેગો થયા છે, તથા ગુરૂ, શીત અને ઉષ્ણ પદમાં બહુવચનને પ્રયોગ કરીને ચેથી ચતુગીના ૪ ચાર ભંગ થયા છે. આ રીતે પૂર્વોક્ત ૧૬ સેળ मी या छ. ४ ‘देसे कक्खडे देसे मरए देसा गळ्या देखा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देखे निद्ध देसे लुक्खे एए वि सोलसभंगा कायव्वा' ते પિતાના એકદેશમાં કર્કશ એકદેશમાં મૃદુ અનેક દેશમાં ગુરૂ અનેક દેશોમાં લઘુ એકદેશમાં શીત એકદેશમાં ઉષ્ણ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળો હોય છે. આ રીતે ગુરૂ અને લઘુ પદમાં બહુવચનને પ્રયોગ કરીને ૧૬ સળ અંગે બનાવાય છે. આ તે પ્રકારને પહેલે ભંગ છે. બાકીના '૧૫ પંદર ભંગે પૂર્વોક્ત પદ્ધતિ પ્રમાણે કરી લેવા તેની વિગત આ પ્રમાણે 'છે–ગુરૂ અને લઘુ પદમાં બહુવચનને પ્રયોગ કરવાથી અને બાકીના પદમાં 'એકવચન કરવાથી પહેલી ચતુર્ભાગીને પહેલે ભંગ થાય છે. તેને બીજે 'मा प्रमाणे थे.-'देशः कर्कशः 'देशोः मृदुकः देशाः गुरुकाः देशा लघुकाः
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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