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________________ ८९० भगवतीसूत्रे 'सव्वे कक्खडे देसा गरुपा देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लक्खे' एएत्रि सोलस भंगा माणियच्या' सर्वः कर्कशो देशाः गुरुकाः देशाः लघुकाः है और शेष चार पदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, द्वितीय चतुर्भङ्गी के प्रथम भंग में द्वितीयपद और पांचवें पद में पहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकश्चन प्रयुक्त हुआ है १, इसके द्वितीय अंग में feature, in vr और सामवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है २, इसके तृतीय भंग में द्वितीय पद में, पांचवें पद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेष पदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है ३, इसके चतुर्थ भंग मेंद्वितीय पद में पद में छठे पद में और सात वें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके द्वितीय भंग में द्वितीय पद में चतुर्थपद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ हैर, इसके तृतीय भंग में द्वितीयपद में, चतुर्थपद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके चतुर्थ भंग में द्वितीय पद में, चतुर्थपद में, छठे पद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है४, चतुर्थ चतुर्भगी के प्रथम भंग में द्वितीयाद में चतुर्थ पद में और पांचवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके द्वितीय संग में द्वितीय पद में, चतुर्थ पद में, पंचम पद में, और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेष - पदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके तृतीय भंग में द्वितीय पद में चतुर्थ पद में पांच पद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके चतुर्थ भंग में - द्वितीय पद में, चतुर्थ पद में पांच पद में, छठे पद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषादों में एकवचन, 'सवे फक्खडे, देसा गरुवा, देला लहुया, देसे सीए, देसे सिणे, देसे निद्धे, देसे लक्खे' सर्वांश में वह कर्कश, अनेक देशों में गुरु, अनेक देशों में लघु, सोज लगे। मनाववामां आव्या छे. 'सव्वे कक्खडे देखा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे ऐसे निद्धे देसे लक्खे' सर्वांशी ते शमने देशोभां ગુરૂ અનેક, દેશમાં લઘુ એકદેશમાં શીત એકદેશમાં બ્લ્યુ એકદેશમાં
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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