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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०६ सू०१ सचेतनामचेतनानामनेकस्वभावत्वम् ६५ कपित्थफलमिति । 'अंबा अंविलिया' अम्मा-अम्लरसोपेतं तक्रमिति निश्चयनयमतेन तु वर्णादिसर्वपदोपेता एव, 'महुरे खंडे' मधुरः खलु शर्करा व्यवहारनय. मतेन मधुररसयुक्तैव निश्चयनयमतेन तु वर्णादिसर्वपदोपेता। 'कक्खडे वइरे' कर्कशो वज्रः । वज्रस्य स्पर्शः कर्कशो व्यवहारनयमतेन निश्चयनयमवेन तु वर्णादारभ्याटविधस्पर्शवान् 'मउए नवणीए' मृदुकं नवनीतम् नवनीते मृदुस्पर्शः व्यवहारनयमन प्रधानतया मृदुत्वस्यैव अनुभवात् निश्चयमतेन तु पञ्चवर्णाः द्वौगन्धौः पञ्चरसा: अष्टापि स्पर्शाः विद्यमानाः सन्ति, 'गरुए अए' गुरुकम् अय:प्रकार से व्यवहारमय से कपित्थ-कैथ कपायरसोपेत कहा गया है और निश्चयनय से वह रूपरसादि सर्वगुणोपेत कहा गया है । 'अंबा अंबलिया' इसी प्रकार से आम्र, खट्टा कहा गया है। क्योंकि प्रधानरूप से उसमें आम्लरस ही रहता है। तथा निश्चयनय के मत के अनु. सार उसमें पांचों ही रस पांचों ही वर्ण, दो गंध और आठ स्पर्श रहते हैं। 'महुरे खंडे' व्यवहारनय की अपेक्षा से खांड मधुर ही है और निश्चयनय के मत से वह पांचवर्ण, पांचरस आदिवाली है। 'कश्खडे. वहरे' व्यवहारनय की अपेक्षा से बजकर्कश है अर्थात् वन में फर्कश (कठोर) स्पर्श है तथा निश्चयनय की अपेक्षा ले वह वर्ण से लेकर आठों ही स्पर्शवाला है। 'म उए नवणीए' व्यवहारनय की अपेक्षा से नवनीत माखन मुटु र्शवाला है और निश्चयनय की अपेक्षा से वह पांचवर्णों वाला दो गंधवाला पांच रसोबाला और आठ स्पर्शवाला है। 'गरुए अए' लोह व्यवहारनय की अपेक्षा से भारी स्पर्शवाला है કપિત્થ-કેવું કષાય-તુરા રસવાળું કહેલ છે. વ્યવહારનયના મત પ્રમાણે પાંચqण पायरस, मे मध भने मा १५शवाणु भान छ. "अंबा अंधालिया" એ જ રીતે વ્યવહારનયના મત પ્રમાણે કેરી ખાટી માનવામાં આવી છે કેમકે તેનામાં મુખ્ય પણે તે રસ રહેલ છે. અને નિશ્ચયનયના મત પ્રમાણે તેમાં પચે २स, पाय पण, मे ध मन मा २५ २७ छ, “महुरे खंडे" ०५१६२ નયના મત પ્રમાણે ખાંડ મીડી જ છે. અને નિશ્ચયનયના મત પ્રમાણે તેમાં पाय, पायरस, मे गध मन मा आरना २५श २९सा छे. "फक्खडे वहरे" व्यवहारनयना मत प्रमाणे 400 *श छे. (8t२) २५शवाणुछे. सन मा २५शा छे. "मउए णवणीए" ०यवहार नयनी अपेक्षाथी भामा भू -કમળ સ્પર્શવાળું છે. અને નિશ્ચયનયના મંતવ્ય પ્રમાણે તે પાચેવર્ણ, પાંચ २स, मे १५ मन मा २५शवाणुछे. “गरुए अए" सा-यहारनयना
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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