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________________ भगवती सूत्रे ટી देसी देसे उस देसा निद्वा देसा लुक्खा ४' सर्वः कर्कशो देशी गुरुको देशो लघुको देशः शीतो देश उष्णो देशाः रिनग्धाः देशा ख्क्षा इति चतुर्थो भङ्गः ४ । 'सन्वे कवडे देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देवा उसिणा देसे निदे देसे लक्खे ४' सर्वः कर्कजो देशो गुरुको देशी लघुको देशः शीतो देशा उष्णः देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति द्वितीयेऽपि चत्वारो भगाः तथाहि--प्रथ मस्तु औव्यवहुवचनो मृले कथित एव द्वितीयस्तु सर्वः कर्कशो देशी गुरुको देशो लघुको देशः शीतो देशा उष्णाः देशः स्निग्धो देशा रुक्षा इति, सर्वः कर्क शो में रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है ऐसा यह यहां तीसरा अंग हैं, अथवा - 'मव्वे कक्खडे, देते गए, देले लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे, देसा निद्वा, देसा लुक्खा ४' सर्वांश में वह कर्कश, एकदेश में गुरु, एक एकदेश में लघु, एकदेश में शीत, एकदेश में उष्ण, अनेक देशों में स्निग्ध और अनेक देशों में रुक्ष स्पर्शवाल हो सकता है ऐसा यह यहां चतुर्थ भंग है । 'सब्वे कनखडे, देसे रुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देखे लक्खे ४' वह सर्वांश में कर्कश, एकदेश में लघु, एकदेश में शीत, अनेक देशों में उष्ण, एकदेश में स्निग्ध और एकदेश में रुक्ष स्पर्शवाला हो सकता है १ यह द्वितीय चतुर्भङ्गी का प्रथम भंग है इसका द्वितीय भंग इस प्रकार से है- सर्वः कर्कशः, देशो गुरुः, देशो लघुकः, देशः शीतः, देशा उष्णाः, देशः स्निग्धः, देशाः रूक्षा' सर्वांश में वह कर्कश, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एकदेश में शीत अनेक देशों में उष्ण और एकदेश में स्निग्ध एवं 'सव्वे कक्खडे, देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसा निद्धा देखा જીવા' તે પેાતાના સર્વાશથી કશ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એક દેશમાં શીત એક દેશમાં ઉષ્ણુ અનેક દેશેામાં સ્નિગ્ધ અને અનેક દેશેામાં ३क्ष स्पर्शवाणी हाय छे. आ थोथे। लौंग छे ४ 'सन्त्रे कक्खडे, ऐसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उसिणा देसे निद्धे देसे लक्खे१' ते पोताना सर्वाશથી કર્કશ એક દેશમાં લઘુ એક દેશમાં ગુરૂ એક દેશમાં શીત અનેક દેશેામાં ઉણુ એક દેશમાં સ્નિગ્ધ અને એક દેશમાં રૂક્ષ પશવાળા હાય छे. १ भाभी अतुल गीना पहला अंग छे. अथवा ते 'सर्व': कर्कशः देशो गुरुकः देशो लघुकः देशः शीतः देशा उष्णाः देशः स्निग्धः देशाः रूक्षाः २' તે પેાતાના સર્વાશથી કશ એક દેશમાં ગુરૂ એક દેશમાં લઘુ એક દેશમાં
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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