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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०८ अनन्तप्रदेशिकपुद्गलगतवर्णादिनि० ८६७ शीतोष्णयोरेकत्वाने त्याच्या लवुकसयोः परस्परं व्यत्यासेन च चतुःषष्टि भङ्गाः करणीया: ५। एवन्-'सम्वे सीए सव्चे निद्धे देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए' सर्वः शीतः सर्वः स्निग्धः देशः कर्कशः देशो मृदुकः देशो गुरुका देशो लचुका, 'एवं जार सव्वे उसिणे सव्वे लुखे देसा कक्खडा देसा मउया देसा गरुया देसा लहुया' एवं यावत् राई उष्णः सर्वो रूशो देशाः कर्कशाः देशा मृदुकाः देशा गुरुकाः देशा लघुकाः, 'एए चउमहि भंगा' एतेऽपि पूर्वोक्तप्रकारेण चतु-पष्टि भगा भान्तीति । 'सच्चे से छफासे तिन्नि चउरासिया भंग. सया भवंति,' सर्वे ते पट्पर्शे चारशीत्यधिकशतत्रयभंगा भवन्ति, प्रकृते पट्शीत उष्ण की एकता और अनेकता को लेकर के तथा लघुक और रुक्ष के परस्पर में व्यत्यास-फेरफार को लेकर के ये ६४ भंग किये गये हैं-यह पांचवीं चतुःषष्ठि है इसी प्रकार से-'सव्वे सीए, सव्वे नि , देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देले लहुए' वह सर्वाश में शीत, सर्वांश में स्निग्ध, देश में कर्कश, देश में मृदु, देश में गुरु और देश में लघु हो सकता है-यहां से लेकर 'एवं जाव सो उलिणे सव्वे लुक्खे, देसा कक्खडा, देशा मउया, देसा गल्या, देसा लहुया' यावत् वह सर्वांश में उष्ण, लाश में रूक्ष, अनेक देशों में कर्कश, अनेक देशों में मृदु, अनेक देशों में गुरु और अनेक देशों में लघु स्पर्शवाला हो सकता है। यहां तक के कथन में सी ६४ भंग होते हैं यह छट्टी चतुष्पष्ठि है इस प्रकार 'सन्दे ते छझाले तिनि चउरासिया भंगसया भवंति' इस प्रकार से ये छहों चतुष्ठि के ६४-६४ भंगों के हिसाब ૬૪ ચોસઠ ભંગ થાય છે. આ જંગમાં શીત અને ઉષ્ણ પદની એકતા અને અનેકતાને લઈને આ ૬૪ ચોસઠ ભંગ બનાવવામાં આવ્યા છે. આ પાંચમી यतुषही छे. मे प्रमाणे 'सन्चे सीए सव्वे निद्ध देसे कक्खडे से मजए देसे गरुए देसे लहुए' ते पाताना सशिथी शीत सशिक्षा नियम દેશથી કર્કશ એક દેશથી મૃદુ એક દેશથી ગુરૂ અને એક દેશથી લઘુ સ્પર્શ पाणी हाय छे. महिथी मारीन 'एवं जाव सव्वे उसिणे सव्वे लुक्खे देसा काखडा देसा मउया देसा गरुया देखा लहुया' यावत् ते पाताना સર્વાશથી ઉoણ સર્વાશથી રૂક્ષ અનેક દેશોમાં કર્કશ અનેક દેશોમાં રુદ અનેક દેશમાં ગુરૂ અને અનેક દેશોમાં લઘુ સ્પર્શવાળો હોય છે. અહિં સુધીના કથનમાં પણ ૬૪ ચેસઠ ભંગ થાય છે. આ છઠ્ઠી ચતુષષ્ઠી છે. એ शत 'सव्वे ते फासे तिन्नि चउरासिया भंगसया भवंति' मा शत मा छन्
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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