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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० ३०५ २०८ अनन्तप्रदेशिकपुद्गलगतवर्णादिनि० ८६३ . २। 'सन्वे मउर सव्वे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लक्खें सर्वो मृदुकः सणे गुरुको देशः शीतो देश उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूक्षा, 'एत्थ वि सोलम भंगा' अत्रापि षोडश भङ्गा भवन्ति । यथा कर्कशघटिते पोडश भङ्गा दर्शिताः तथा कर्क शस्थाने मृदुकपदं नियोज्य ताश क्रमेणेव पोडशभङ्गाः करणीयाः ३, 'सव्वे मउर सव्वे लहुए देसे सीए देसे उसिणे । देसे निद्धे देसे लुक्खे' सो मृदुकः स लघुको देशः शीतो देश उष्णो देशः स्निग्यो देशो रूक्ष:, 'एन्थ वि सोलस भंगा' अत्रापि षोडश भङ्गा भवन्ति कर्कशस्थाने मृदुकत्वं गुरुकस्थाने लघुकत्वं निवेश्यापि पूर्वोक्तक्रमेण पोडश भङ्गाः करणीयाः ४ । 'एए चउसढि भंगा' एते चतुः पष्टिमा चतुर्णा पोडश सादायानां संकलनया चतुःषष्टिसंख्यका भङ्गा भवन्तीति १ । 'सव्वे कक्खडे 'सचे मउए, सब्वे गाए, देसे सीए, देसे उक्षिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे जिस प्रकार से कर्कश पदयुक्त शीत उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष आदि में इनके एकत्व और अनेकत्व को लेकरके क्रमशः १६ भंग दिखलाए गये हैं उसी प्रकार से कर्कश के स्थान में मृदुपद को रख करके उसी क्रम से १६ भंग यहां करना चाहिये । 'सव्वे मउए सम्वे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लक्खे' सर्कश मे वह मृदु, सर्वाश में लघु, एकदेश में शीत, एकदेश में उष्ण, एक देश में स्निग्ध और एकदेश में वह रूक्ष स्पर्शवाला होता है। इस प्रकार के कथन में भी १६ भंग होते हैं कर्कश के स्थान में मृदुपद को और गुरु के स्थान में लघुपद को रख करके ये १६ भंग घनाये गए हैं ऐसा जानना चाहिये 'एए चउसहि भंगा' इस प्रकार से ये चार १६ सोलह _ 'सम्वे मतप, सम्वे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्ध देसे लुक्खे' જે રીતે કર્કશ પદની સાથે શીત, ઉષ્ણુ નિગ્ધ અને રૂક્ષ આદિ પદમાં એકવ અને અનેકત્વથી ક્રમશઃ ૧૬ સેળ ભંગ બતાવ્યા છે એજ રીતે કર્કશના સ્થાને મૃદુ પર રાખીને એજ ક્રમથી અહિયાં સોળ ૧૬ ભંગ કરી લેવા, 'सव्वे मउए सव्वे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' ते પિતાના સર્વાશથી મૃદુ સર્વાશથી લઘુ એકદેશમાં શીન એકદેશમાં ઉણુ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એક દેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળે હેાય છે. આ પ્રકારના કથન પ્રકારથી પણ સોળ ભંગ થઈ જાય છે. અહિયાં કર્કશને સ્થાને મૃદુ પદને અને ગુરૂના સ્થાને લઘુ પદને રાખીને આ સેળ ભંગને પ્રકાર રહ્યો छ. तम सभा. 'एए चउसद्धि मंगा' मारीत १६-४-६४ सण सामना
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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