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________________ ७४ . ====---- ----- भगवती तिक्तंच अजश्व १, स्यात् तिक्तश्चाग्लाश्व २, स्यात् तिक्ताचाम्लश्च ३, स्शद तिक्त श्वाम्लाश्चेति चतुर्थ ४, (३) एवं तितरधुरथोयोगेऽपि चलारो भंगार, स्यात् तिक्तश्च मधुरश्च १, स्यात् विक्तश्च मधुराश्च २, स्यात् तिक्ताश्च मधुरश्च-३, स्यात् तिक्तश्च मधुराश्चेति चतुर्थः ४ । (४) एवं कटुरूपाययोोंगेऽपि चारो भंगा, प्रदेशों में कषाय रसवाला हो सकता है २ कदाचित् वह अनेक प्रदेशों में तिक्त रसवाला और एक प्रदेश में कषाय रसवाला हो सकता है अथवा कदाचित् वह अनेक प्रदेशों में तिक्त रसवाला और अनेक प्रदेशों में कषाय रसवाला हो सकता है इसी प्रकार से तिक्त और अम्ल रस के योग में भी ४ अंग होते हैं-यथा-'स्थात् तितश्च अग्लश्च १' 'स्यात् तिक्तश्च अग्लाश्च ३' स्यात् तिक्ताश्च अन्लश्च ३' स्यात् तिक्ताश्च अम्लाचे ४' इन भङ्गों के अनुसार वह कदाचित् तिक्त और अम्ल हो सकता है १ कदाचित् वह एक प्रदेश में तिक्त रसवाला और अनेक प्रदेशों में अम्ल रसवाला हो सकता है २, कदाचित् वह अनेक प्रदेशों में तिक्त रंसवाला और एक प्रदेश में अम्ल रसशाला हो सकता है ३, अथवा काचित् वह अनेक प्रदेशों में निक्त रखवाला और अनेक प्रदेशों में अम्ल रसवाला हो सकता है । इसी प्रकार से तिक्त और मधुररस के योग में भी चार भंग होते हैं-पथा-'स्थात् तिक्तश्च मधुमश्च-१, 'स्यात् तिक्तश्च मधुराश्च २' स्यात् तिक्तश्च मधुरश्च ३, 'स्थात् तिक्ताश्च मधुगश्च पर ४ २ २ बाय 2. 'स्यात् तिक्ताश्च अम्लश्च' वार ते तीमा २स्वागाय छ भने वार म.स २सबाण हाय छे. १ 'स्य त् तिक्तश्च अम्लाच' કિઈ એક પ્રદેશમાં તે તીખા રસવાળ હોય છે. અને અનેક પ્રદેશમાં ખાટા રસવાળો हाय छ: २ स्यात् तिक्ताश्च अन्लान्य' भने प्रदेशमा तीमा २सरी हाय छे. Fi मे समाते पट २३.। डाय छे. ३ 'स्यात् तिक्तश्च अन्डरच' भने પ્રદેશમાં તે તીખા રસવાળે હોય છે. અને અનેક પ્રદેશોમાં ખાટા રસાળો હોય છે જ આજ રીતે તીખા અને મીઠા રસના ચે નથી પણ ૪ ચાર ભાગે थाय छे. ते मा प्रभारी छ. 'स्थात् तितश्च मधुरश्च' वार से तीमा २ सय छे. भने वार भी। २साणा डाय छ. १ 'स्यात् तिक्तश्च मधुराम्च' में प्रदेशमा त तीमा २साणे डाय छे. मन न. प्रदेशमा तभी २सवाणा हाय छ. २ 'स्यात् तिक्तश्च मधुरश्च' सन। प्रदेशमा ते તીખા રસવાળ હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં મીઠા રસવાળું હોય છે. ૩ __ "यात तिक्ताश्च मधुर श्व' भने प्रदेशमा त तीमा सवाणा हाय छे. भने
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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