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________________ ७४० भगवती सूत्रे 'जइ पंचचन्ने' यदि पञ्चवर्णः सप्तप्रदेशिकः स्कन्धस्तदा- 'सिय कालए य नीलए य लोहियएय हालिए य सुकिल्लए य १' स्यात् कालश्व नीलश्च लोहितश्च हारिद्रश्च शुक्लथेति प्रथमो भङ्गः १, सर्वत्रैकवचनान्तः । 'सिय कालए य नीलए य ofore a हालिए य सुकिल्लागा य २' स्यात् कालश्च नीलश्च लोहितश्च हारिद्रश्च शुक्लाचेति चरमबहुवचनः शेषैकवचनान्तो द्वितीयो भङ्गः २ । 'सिय कॉलए य नीलए य लोहियए य हालिग्रा य सुकिल्लए य '३' स्यात् कालश्च नीलश्च १५ भंग होते हैं, एवं नील, लोहित, हारिद्र शुक्ल इनके संयोग से भी १५ भंग होते हैं अतः १५x५ = ७५ सब भंग हो जाते हैं । 'जह पंचवन्ने' यदि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध पांच वर्णों वाला होता है तो - 'सि कालए य, नीलए य, लोहियए थे, हालि६ए य, सुकिल्लए ये १' कदाचित् वह कृष्ण वर्णवाला, नीले वर्णवाला, लोहितवर्णवाला ure वर्णवाला और शुक्ल वर्णवाला हो सकता है १ इसमें सर्वत्र एक वचनान्त का ही प्रयोग हुआ है 'सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिए य, सुलिगा य २' अथवा वह एक प्रदेश में कृष्ण वर्णवाला, एक प्रदेश में नीले वर्ण वाला, एक प्रदेश में लोहित वर्णवाला, एक प्रदेश में पीले वर्ण वाला और अनेक प्रदेशों में शुक्ल वर्णवाला हो सकता है, इस द्वितीय भङ्ग में अन्तिमपद बहुवचनान्त हुआ है और शेषपद एकवचनान्त हैं 'सिप कालए य, नीलए य, लोहियए य, અને સફેદ આ ચારે વણુના ચૈાગથી પશુ પન્નુર ૧૫ ભગા થાય છે. એ' રીતે ૧૫૪૫=૭૫ કુલ પચાતુર લગે થાય છે. 'जइ पंचवन्ने' ले ते सात प्रदेशवाणी रुध पांय पोवाणी होय ते या प्रमाणे॒ना यांय वņत्राणी होश छे. 'सिय कालए य, नीलए य, लोहियए थे, हालिए य, सुक्किललए य१' अर्धवार ते अजा वर्थवाणी होय छे. अर्धवार નીલ વણુ વાળા હાય છે. કેાઇવાર લાલવણુ વાળા હાય છે. કોઈવાર પીળા વણવાળા હાય છે. તથા કોઇવાર સફેદ વણુ વાળા હાય છે.' આ પહેલા लगभां मधा पहोभां मेऽवयनमा प्रयोग थयो छे. 'सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिए य, सुक्किल्लगा य २' अथवा ते पोताना भे પ્રદેશમાં કાળા વણુ વાળો, એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણ વાળો એક પ્રદેશમાં લાલવણુ વાળા હાય છે. એક પ્રદેશમાં પીળાવ વાળો અને અનેક પ્રદેશેામાં સફેદ વણુવાળા હાય છે. આ ખીજા ભંગમાં છેલ્લુ પત્ર ખડુવચનાન્ત છે. અને आङ्गीना यहो मेऽवयंनवाजा ह्या छे. २ "सिय काउए य, नीलए य, 1 "
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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