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________________ प्रमैचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०४ पट्पदे शिकस्कन्धे वर्णादिनिरूपणम् ७१७ इति चतुर्थत्रिकम् अत्रापि चत्वारो भङ्गाः ४ । एवमत्र त्रिस्पर्शे षोडश भङ्गा भत्रनवीति । यदि चतुःस्पर्शः षट्पदेशिकः स्कन्धस्तदा देशः शीनो देश उष्णो देशः स्निग्धो देशः शीतः देशा उष्णाः' वह अपने सर्वांश में स्निग्ध स्पर्शवाला एकदेश में शीत स्पर्श बाला और अनेक देशों में उष्णस्पर्श वाला हो हो सकता है २ अथवा - 'सर्व: स्निग्धः देशाः शीताः देश उष्ण सर्वांश में वह स्निग्ध स्पर्श वाला अनेक देशों में शीतस्पर्श वाला और एकदेश में उष्णस्पर्श वाला हो सकता है २, अथवा - 'सर्व: ग्धिः देशाः शीताः देशा उष्णा' सर्वांश में वह उष्णस्पर्श वोला अनेक देशों में वह शीत स्पर्श वाला और अनेक देशों में उष्णस्पर्श वाला हो सकता है ४, इस प्रकार के थे ४ भंग स्निग्ध शीत और उष्णस्पर्शके एकत्व और अनेकत्व को लेकर हुए हैं । 'सर्व' रूक्षः देशः शीतः देश उष्ण:' यह चतुर्थं त्रिक है इसमें भी रुक्ष शीत और उष्ण के एकत्व और अनेकस्व को लेकर ४ भंग होते हैं इनका उत्थापन प्रकार पूर्वोक्त रूप से ही है इस प्रकार से यहां पर तीन स्पर्शो के एकत्व और अनेकस्व को लेकर प्रत्येक स्पर्श त्रिक के चतुष्क में ४-४ भंग होने से १६ भंग हो जाते हैं । १ अथवा - 'सर्वः स्निग्धः देश. शीत. देशा उष्णा' ते સર્વાં શમાં સ્નિગ્ધ-ચિકણા સ્પશવાળો હેાય છે. એકદેશમાં 'સ્પર્શ વાળો હાય છે. તથા અનેક દેશેામાં ઉષ્ણુસ્પર્શવ ળો હોય છે આ ખીજો ભાગ છે. ર અથવા '' far. Tar: Mar: ta 360:' uqlani a fau-faqızya'qın હાય છે. અનેક દેશેામાં ઠંડપવાળો હાય છે. અને એક દેશમાં ઉષ્ણુ स्पर्शवाणी होय छे. या त्रीले लंगू छे 3 अथवा 'सर्व स्निग्धः देशा शीताः देशा उष्णाः ४' सर्वाशमां ते स्निश्व थिथा स्पर्शवाणी होय छे. અનેક દેશામાં ઠંડાસ્પ વાળો હેય છે. અને અનેક દેશેામાં ઉષ્ણુવાળો हाय छे. या थोथे। लौंग हे ४, म यर अंगो स्निग्ध-शीत-मने t य · स्पर्शना शेोऽयथा भने गने पाथी थया छे. 'सर्वः रूक्ष देशः शीतः देश उष्ण' मा यथुः छे. आ पशु इक्ष, शीत, याने उष्णु स्पर्शना એકત્વ અને અનેકપણાથી ૪ ચાર ભગા થાય છે. આ ભગ। મનાવવાની રીત પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જ છે. આ રીતે અહિયા ત્રણુ સ્પના એકપણા અને અનેકપણાથી દરેક સ્પશત્રિકના ચતુષ્ટમાં ૪૦૪ ચાર ચાર ભગા થાય છે. એ રીતે કુલ ૧૬ સેાળ ભગા થાય છે,
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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