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________________ प्रमेयंचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०४ षट् प्रदेशिक स्कन्धे वर्णादिनिरूपणम् ७०३ कडुए य कंसाए य' स्याद वे टुकश्च कषाथ, अत्रापि चत्वारो भङ्गः करणीयाः ५ । 'सिय कडुए अमिळए २' स्यात् कटुकच अम्लय अत्रापि चत्वारो मङ्गा महरएय १' इसी प्रकार से वह तिक्तरस वाला और मधुररल वाला भी हो सकता है १' स्यात् तिक्तश्च मधुराश्च २' एक प्रदेश में वह तिक्तरस वाला और अनेक प्रदेशों में मधुररस वाला हो सकता है २ 'स्यात् तिक्ताच मधुर' अनेक प्रदेशो में वह तिक्तरस वाला और एक प्रदेश मैं मधुररस वाला हो सकता है ३ ' स्यात् तिक्ताश्च मधुराश्च' वह अनेक प्रदेशों में तिकरस वाला और अनेक प्रदेशों में मधुररम वाला हो सकता है ४ इस प्रकार के यहां ४ भंग होते हैं 'सिग कडुए थ कसाए य' यहां पर भी ४ भंग होते हैं जो इस प्रकार से हैं अथवा - वह कटुकरेस बालो और कषायरस वाला हो सकता है १ एक प्रदेश में वह कटुकरेस वाला और अनेक प्रदेशों में वह कषायरस वाला हो सकता है २ अनेक प्रदेशों में वह कटुकरस वाला और एक प्रदेश में वह कषाय रंस वाला हो सकता है ३ अथवा अनेक प्रदेशों में - ३ प्रदेशों में वह कटुकरस वाला और ३ प्रदेशों में वह कषायरस वाला हो सकता है ४ इस प्रकार से ये मूलभंग में चार भंग हैं 'सिय कडुए य अमिलए पं . अदेशाम भाटा रसवाणी होय छे, ४ खिय तित्तए य महुए य १" " પ્રમાણે કોઈવાર તે તીખા રસવાળા હાય છે. અને કાઇવાર મધુર-મીઠા રસवाणी द्वय छे. १ स्यात् तिक्तश्च मधुराश्च२' ४ प्रदेशमां ते तीमा रसवाणी अने अने प्रदेशाभां मधुर-भीठां रसवाणी होय छे. २ 'स्यात् तिक्तःश्च मधुर ३' ફાઈવાર તે અનેક પ્રદેશમાં તીખારસવાળા હાય છે અને એકપ્રદેશમાં મધુર-મીઠા रसवाजी हाय छे. 3 'स्यात् तिकाचं मधुराश्च ४' ने प्रदेशोभां ते तीमा ચૂંસવાળો હાય છે તથા અનેક પ્રદેશમાં મીઠા રસવાળા હોય છે. ૪ આ ચાર लौंगो थाय छे “खिय कडुए, य कसाए य १' अर्धवार छे, उडवा रसवाणी होय, छे અને કેાઈવાર કષાય-તુરા રસવાળા હોય છે. ૧ તે એક પ્રદેશમાં કડવા રસવાળા " हाय है. मने, भने! प्रदेशमां उपाय रसवाणी होय . २ भने, ते अने પ્રદેશમાં કડવા રસવાળા અને એક પ્રદેશમાં કષાય-તુરા રસવાળા હાય છે, ૩ અથવા અનેક પ્રદેશામાં-૩ અથવા અનેક પ્રદેશમાં-ત્રણ પ્રદેશેામાં કડવા રસવાળા અને ત્રગુ પ્રદેશે માં કષાય-તુરા રસવાળા હેાય છે. આ રીતે ચાર ભગા થાય છે. તેવી જ રીતે કડવા અને ખાટા રસના પણ ચાર ભગા થાય છે, જે આ પ્રમાણે જે'सिय कडुए य् आमिलए य: १' अर्धवार ते आ रसाणी होय हे भने अर्धवार ا
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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