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________________ प्रमैर्थयन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०३ पञ्चप्रदेशिकस्कन्धनिरूपणम् ६५१ कालश्च लोहिताश्च शुक्लाश्च ४, स्यात् कालाश्च लोहितश्च शुक्लश्च ५, स्यात् "कालाच लोहितश्च शुक्लाश्च ६, स्यात् कालाश्च लोहिताच्च शुक्लश्चेति सप्तमः 'कालगहालिदसु किल्लेसु ७' एवं कालदारिद्रशुक्लेषु सप्तभङ्गा भवन्ति, तथाहि'सिय कालए हालिee सुक्किल्लर य १, सिय कालर हालिदए सुकिलगा य २, 'क्लिए य' यह पांचवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक -प्रदेश कृष्णवर्णवाला एकप्रदेश लालवर्ण वाला और एकप्रदेश शुक्ल वर्ण वाला हो सकता हैं ५ 'सिय कालगा लोहियए य सुकिल्ला य ६' यह छठा भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्णवर्ण वाले एक प्रदेश लालवर्ण वाला और अनेक प्रदेश शुक्लवर्णवाले हो सकते हैं 'सिय कालगाय लोहियगा य सुकिल्लए य' यह सातवां भंग हैं इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्णवर्ण वाले अनेक प्रदेश लालवर्ण वाले और एक प्रदेश शुक्लवर्ण वाला हो सकता है ७ 'कालगहालिद सुकिल ए ७' इसके अनुसार कृष्णपीत शुक्ल इनके संयोग में भी ७ भंग होते हैं - जो इस प्रकार से है- 'सिय कालए हालिए सुकिल्लए य१' यह प्रथम भंग है इसमें वह अपने किसी प्रदेश में कृष्णवर्ण वाला हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीला और किसी एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला हो सकता है १ अथवा 'सिव कालर हालिदए सुकिल्लागा य' कदा'far काला य लोहियए य सुक्किल्लए य ५' तेना भने प्रदेश अणावालुवामा હાય છે. એક પ્રદેશ લાલ વણુ વાળા હાય છે. તથા એક પ્રદેશ घोणा वर्षावाणी होय हे भा यांथभो लौंग छे, प 'सिय कालगा लोहियए 'य सुकिल्ला य ६' तेना भने प्रदेशी दृष्यवाणु वराजा होय . પ્રદેશ લાલવણુ વાળા હૈાય છે. તથા અનેક પ્રદેશા સફેદ વણુ વાળા હાથ छेमा छट्टो लौंग छे. 'सिय कालगा य लोहियगा य सुक्किरलए य ७' તેના અનેક પ્રદેશેા કાળા વણુ વાળા હાય છે. અનેક પ્રદેશ લાલવણુ વાળા હાય છે તથા એક પ્રદેશ ધેાળાવણુ વાળા ડાય છે. આ સાતમા ભંગ છે, છ કૃષ્ણવ, પીળાવ, અને ધેાળાવણુના ચૈાગથી પણ છ સાત ભગા અને છે ते भाटे सूत्र छे - 'कालगहालिदसुकिल्लएसु सत्त भंगा' दृष्य, चीत, मने श्वेत वर्षाना योगथी सात लगो थाय छे ते मी प्रमाणे छे- 'सिय कालए हालिए सुल्लिए य१' माथित ते पोताना मे देशमां आणा वर्षावाणी હાય છે. કાઇ એક દેશમાં પીળા વણુ વાળે! હાય છે તથા ફાઇ એક દેશમાં श्वेत वर्षावाणी होय छे, भा रीते या पहेलो लौंग छे. १ अथवा 'सिय कालए हालिए सुलिगा -२' हाय ते असे अदेशमां गंजा वांर्थवाणी V
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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