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________________ . ५९८ भगवतीस् भवन्ति कालादिशुक्लान्तपश्चवर्णानां द्विकसंयोगे दशभंगा भवन्ति दशानां च चतुःसंरूपया गुणने एकत्वाने रुत्वाभ्यां चत्वारिंशद् भङ्गा भवन्ति इति । 'जड़ तिबन्ने' यदि त्रिश्चतुःप्रदेशिकः स्कन्धस्तदा पुनरेते वक्ष्यमाणास्तत्प्रकारा भवन्ति 'सिय काल य नीलए य लोहियए य' स्यात् - कदाचित् कोऽपि अंशः कालच नीलश्च लोहितश्च तत्र कोऽपि प्रदेशः कृष्णः कोऽपि नीला कोऽपि कोहिको भवेदिति प्रथमो भंगः | 'सिय कालए नीचए लोहियगाय' स्यात् कृष्णो नीलो लोहितst एकः मदेशः कृष्णः, एकश्वनीला प्रदेशौ च लोहितौ स्यातामित्येवं द्वितीयो भंगः स्यात् । ' सिय कालए य नीलगाय लोहियए य' स्यात् कालव rtant च लोहितश्च कदाविदेकः प्रदेशः कृष्णः कदाचिद् द्वौ प्रदेशौ नीलों एक , संग पुनः ४० हो जाते हैं कालादि शुक्लान्त, पांच वर्णों के द्विकसंयोग १० अंग होते हैं फिर एकत्व और अनेकत्व को लेकर इन १०का बार से गुणा करने पर ४०भंग हो जाते हैं 'जह तिवन्ने' यदि चतुःप्रदेशिक स्कन्ध तीन वर्णों वाला होता है तो वहां ये वक्ष्यमाण भंग होते हैं-'सिय कालए य नीलए य- लोहियए य' कदाचित् वह कृष्ण वर्ण वाला भी हो सकता है अर्थात् इसका कोई प्रदेश काला भी हो सकता है कोई प्रदेश नीला भी हो सकता है और कोई प्रदेश इसका लाल भी हो सकता है इस प्रकार से यह प्रथम भंग है 'सिय फालए नीलए य लोहियगा य' कदाचित् कोई एक प्रदेश इसका काला भी हो सकता है कोई एक प्रदेश नीला भी हो सकता है और दो प्रदेश इसके लाल भी हो सकते हैं इस प्रकार का यह द्वितीय भंग है । 'सिय અને છે. તે આ રીતે છે જેમ કે—કાળાવણુથી ધાળાવણુ સુધીના પાંચ વધુ ના દ્વિક સંચાગી ૧૦ દસ ભગે બને છે. અને એકત્વ અને અનેકત્વપણામાં મા દસ ભગતા ચાર ગણા કરવાથી ૪૦ ચાળીસ ભગા થઈ જાય છે. 'जइतित्रपणे' ले यार प्रदेशी संबंध युवा होय तो त्यां या रीते लौंग थाय छे. 'प्रिय कालए य नीलए य लोहियए य उद्वाय ते अजावयुवाजो પણ હુઈ શકે છે. અર્થાત્ તેને કોઇ એક પ્રદેશ કાળાવણુ વાળા પણ હેઈ શકે છે. કે ઇ એક પ્રદેશ નીલાવણુ વાળા પશુ હાઈ શકે છે. તેના કાઇ એક प्रदेश सासवणुना पथ होई शडे हे, या रीतने। आा पहेली - भौंग छे, 'प्रिय कलर नीलए य लोहियगा य' अाथित् तेन । ऊ अहेश अणावायु वाणी પણ હાઈ શકે છે અને કેાઈ એક પ્રદેશ, નીલવવાળા પશુ હોઈ શકે છે. અને તેના બે પ્રદેશા લાલ પણ હાઇ શકે છે આ રીતના આા ખીજે ભગ छे. ' सिय कालए य नीलगाय लोहियए य' अाथित् तेना : प्रदेश अणावाशु
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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