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________________ प्रमेन्द्रका टीका २०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५८९ टीका -- 'चउपसिए णं भंते ! खंधे कइवन्ने कइगंधे करसे कइफा से पन्नत्ते ?' चतुः प्रदेशिकः खलु भदन्त | स्कन्नः कतिवर्णः कतिगन्धः कतिरसः कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः ?, चत्वारः प्रदेशाः परमाणवोऽत्रयतया विद्यन्ते यस्य स्कन्धस्यानयचिनः स चतुः प्रदेशिकः रुरुन्धः तस्मिन् वर्णगन्धरसस्पर्शाः कियन्तो विद्यते ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'जहा' इत्यादि, 'जहा अट्टारसममए जात्र चउफासे पन्नत्ते' यथाऽष्टादशशते पष्ठोदेश के यावत् स्यात् चतुः स्पर्शः प्रज्ञप्तः, तथाहि तत्रस्थं मकरणम् 'सिय एगवन्ने सिवन्ने विन्ने चिन्ने, सिगमधे सिय दुगंधे, सियएगर से जाव चउरसे, सिय दुफा से जाव चउफासे' 'चपएसिए णं भते ? खधे' इस्थादि टीकार्थ - - इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से चतुः प्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्णादि वाला होता है ऐसा मइन किया है और प्रभु ने इस प्रश्न का उत्तर दिया है यह प्रकट किया गया है- 'चउप्परसिए णं भते ? बंधे कन्ने कह गंधे कहर से कहफा से पन्नत्ते' हे भदन्त ! अवयव रूप से चार प्रदेश परमाणु जिसके होते हैं ऐसे उस चतुः प्रदेशिक स्कन्ध रूप अव यवी में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कितने होते हैं ? ऐसो यह प्रश्न है इसके उत्तर में प्रभुने कहा है-'जहा अट्ठारसमसए जाव चडफासे पनते' गौतम जैसा अठारहवें शतक में यावत् वह चार स्पर्श वाला होता है यहाँ तक कहा गया है वैसा ही यहां पर भी कह लेना चाहिये वहां का प्रकार ऐसा है सिय एगवन्ने सिय दुबण्णे सिय तिवण्णे सिय चडवण्णे 'चखिए णं भंते । खंवे' इत्यादि ટીકા—આ સૂત્રથી ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને ચાર પ્રદેશવાળા સ્કંધ કેટલા વાંતિવાળા હાય છે? એ પ્રમાણેના પ્રશ્ન કરે છે. અને પ્રભુએ તેના ઉત્તર આપ્યા છે. એ વાત પ્રગટ કરી છે. ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને પૂછે છે કે'चउप्पएसिए णं भंते । खंधे कइवन्ने, कइरसे कइफासे पण्णत्ते १' हे भगवन् અવયત્ર રૂપથી ચાર પ્રદેશ પરમાણુ જેના હાય છે, એવા તે ચાર પ્રદેશવાળા સ્કંધ રૂપ અવયવીમાં કેટલા વર્ષાં હાય છે ? કેટલા ગધા હૈાય છે? કેટલા રસે હાય છે? મને કેટલા સ્પર્શે હાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छे- 'जहा अट्टारसमए जाब चडफासे पण्णत्ते' हे गौतम | गढारमा शतना યાવત્ તે ચાર સ્પવાળા હાય છે. અહિયાં સુધીનું કથન સમજી લેવું ત્યાંનું તે भ्थन मा प्रमाणे छे.-‘सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, लिय तिवण्णे, सिय चडवणे,
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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