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________________ भगवतीस ५७६ उष्णव स्निग्धश्चेति तृतीयो भङ्गः ३, कदाचित् उष्णश्च रूक्षश्चेति चतुर्थों भङ्गः। एवं सङ्कलनया स्पर्शद्वयवत्वे त्रिपदेशिकस्य सन्धस्य स्पर्शविपये चत्वारो भङ्गा भवन्तीति । 'जइ तिफासे' यदि त्रिमदेशिक: स्कन्धः, त्रिस्पर्श:-स्पर्शत्रयवान तदा 'सव्ये सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वः शीतो देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति प्रथमः सर्वाशे शैत्यमे कदेशे स्निग्धताः एकस्मिन रूक्षता इत्यर्थः तथाहि कह लेना चाहिये सिए य निद्धे य' यह प्रथम अंग है द्वितीय भंग 'सिय सीए य अस्खे ' इस प्रकार से है इस में कदाचित् वह शीत हो सकता है और सक्ष भी हो सकता है ऐसा कहा गया है तीसरा अंग-सिय उलिणे य निधि इस प्रकार से है इसमें कदाचित् वह उष्ण भी हो सकता है और स्निग्ध भी हो सकता है ऐसा समझाया गया है चतुर्थ भग-सिय उसिणे व रुस्खे य' ऐसा है हम में कदाचित् वह उष्ण हो सकता है और लक्ष भी हो सकता है ऐसा कहा गया है इस प्रकार शीन और उपण को प्रधान करके उनके साथ स्निग्ध और रूक्ष युक्त करके ये ४भा त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के दो स्पों के विषय में बने हैं __अब त्रिस्पर्श विषयक कथन करते हैं-'जइ निफाले यदि वह त्रिप्रदेशिकमन्ध तीन स्पर्शवाला होता है तो वह इस प्रकार से तीन स्पर्शोवाला हो सकता है 'लये सीर, देसे निद्धे देसे लश्खे ?' यह साँश में शीत हो सकता है, एकदेग में स्निग्ध हो सकता है और दूसरे एक देश An छ, म 'सिय सीए य रुखे र प्रभाए छ. ALATHI हायित् ते शीत-331 श छे प्रमाणे . त्रीले 'सिय उसिणे य निद्धे य' हयात ४-१२म पाछे मन निय-शिवाने ५५ देश छ यो। म सा प्रणे छे.-'सिय उसिणे य रुक्खे य' हायित् તે ઉષ્ણ હોઈ શકે છે અને રક્ષ પણ હોઈ શકે છે તેમ બતાવેલ છે. એ રીતે ઠંડા અને ગરમ ગુણને મુખ્ય બનાવી તે તેની સાથે બ્ધિ અને રૂક્ષને જી ત્રણ પ્રદેશવાળા ક ધના બે સ્પર્શ પણાના વિષયમાં ૪ ચાર स्प न] २५० ५ना समधनु ४थन 241 प्रभारी छ 'जइ तिफासे' ने તે ત્રણ પ્રદેશવાળો રકંધ ત્રણ સ્પર્શવા હોય છે તે તે આ પ્રકારે ત્રણ m मन छ.-'सव्वे सीए, देसे निद्धे, देसे लुक्खे' त सशिथी शीत સ્પર્શવાળા હોય છે એક દેશમાં સ્નિગ્ધ સ્પર્શવાળ હેય છે અને બીજા એક દેશમાંસ્તિ5 રૂક્ષ પશવ ળ હેય છે ૧ આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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