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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५६९ एवं शुक्लेनापि समं नीलस्य त्रयो भङ्गाः तथाहि-स्याद नीलश्च शुक्लश्च १, स्यात् नीलश्च शुक्लौ च २, स्यात् नीली च शुक्ल श्च ३ 'सिय लोहियए य हालिहए य भंगा ३' स्यात् लोहितव पीतश्च भङ्गास्त्रया-क्यात लोहितश्च पीतश्च १, स्यात् लोहितश्च पीतौ च २, स्यात् लोहितौ च पीतश्चेत्येवं त्रयो भगा इहापि । 'ए मुक्किासि समं भंगा ३' एवं शुक्ले नावि समं लोहितस्य त्रयो भङ्गा भवन्ति, तथाहि-लोहितश्च शुक्मश्व इत्येक १, लोहितश्च शुक्लो भंग कथन में प्रथम भंग वा अभिप्राय ऐसा है कि उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम प्रदेश नील भी हो सकता है और अपर प्रदेश पीत भी हो सकता है १ प्रथम प्रदेश नील भी होसकता हैं और दो प्रदेश पीले भी हो सकते हैं २, प्रथम दो प्रदेश नीले भी हो सकते हैं एक प्रदेश उसका पीला भी हो सकता है ३ 'सुकिल्लेण वि समं भंगा३' इसी प्रकार से शुक्ल के साथ भी नील के ३भंग होते हैं-'स्यात् नीलश्च शुक्ल श्व१, स्यात् नीलश्च शुक्लौ च २, स्थात् नीली च शुक्लश्च ३, पूर्वोक्तरूप से ही इन भंगों का अर्थ ज्ञातव्य है 'लिय लोहिए य हालिद्दए य भंगा ३' स्यात् लोहितश्च पीतश्च' ऐसा जो अंग है उस में भी भंग इसी प्रकार से होते हैं-'स्यात् लोहितश्च पीतश्च१, स्थात् लोहिश्च पीतौ चर, स्पात लोहितोच पीतश्च ३ इसी प्रकार से शुक्ल के साथ भी लोहित के ३ भंग होते हैं-'स्थात् लोहितश्च शुक्लश्च १, लोहितश्च शुक्लौ च २, लोहितौ च नीलश्च पीतौंचर स्यात् नीलौच पीतश्च३' मा माना थनमा पसामना પ્રકાર આ પ્રમાણે છે. કે-તે ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધને પહેલો પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. અને બીજે પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે. ૧, તે જ પ્રમાણે પ્રથમ પ્રદેશ નીલવર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. અને બે પ્રદેશે પીળા પણ હોઈ શકે છે. ૨ તથા પહેલા બે પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળા પણ હોઈ શકે છે અને એક પ્રદેશ પીળા पण डाय छे 3 'सुकिल्लेण वि समं भंगा' से प्रभारी श्वेत पनी साथ पर नीस व ना प डाय छे. 'स्यात् नीलश्च शुक्लश्च१ स्यात् नीलश्च शुक्लौचर स्यात् नीलौच शुवलश्च३' से शत पूरित ३५थी १ मा लगाना २ सम०४३1. 'सिय लोहियए य हालिहएय भगा३' स्यात् लोहितश्च पीतश्च' से प्रमाणन २ सय भने छे, तभा ५९ अवान्त२ 3 ऋण लगे! मे शमन छ 'स्यात् रोहितञ्च पीतश्च१ स्यात लोहितश्च पीतौचर स्यात् लोहितोच पीतश्च' भन शते श्वेत व नी सा2 खास ना योगथा ३ मा मन छ. ते भारी छे. 'स्यात लोहितश्च शुक्लश्च१ स्यात, लोहि भ० ७२
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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