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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५६७ लोहितयोः संबन्धात् त्रयो भङ्गाः । 'एव हालिइएण वि समं भंगा' एवं हारिद्रेण सममपि त्रयो भङ्गाः, तथाहि-स्यात् कालः स्यात् पीतः १, स्यात् कालश्च पीतों च २, स्यात् कालकौ च पीतश्चेति । 'एव मुकिल्लेण वि समं एवं शुक्लेनापि समं त्रयो भङ्गाः, स्यात् कालश्च शुक्लश्च १, स्यात् कालश्च शुक्लौ च २, पीले वर्ण के जो तीन भंग धनते हैं उसको बताते हैं 'सिय कालए य हालिहए य' ऐसा है उसको भी ३ भंगों में विभक्त करते हैं यही बात ‘एवं हालिद्दएण वि सम भंगा' इस सूत्रपाठ द्वारा सूचित की गई है-'सिय कालए य सिय हालिद्दए य१, सिय कालए य हालिहगा य २ सिय कालगाय हालिइए य३ 'जब कृष्ण वर्ण के साथ पीतवर्ण को रखकर भंग बनाये जाते हैं तो इस स्थिति में प्रथम भंग- स्यात् काला स्थात् पीता' ऐसा होता है इसमें त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम देश कृष्णवर्ण वाला हो सकता है और दूसरा प्रदेश कि जो दो प्रदेशों की एकत्व विवक्षा से एक मान लिया गया है पीत भी हो सकता है द्वितीय भंग में एक प्रदेश काला हो सकता है और दूसरे दो प्रदेश पीले वर्ण वाले भी हो सकते हैं तृतीय भंग में दो प्रदेश काले वर्ण वाले हो सकते हैं और तीसरा एक प्रदेश पीले वर्ण वाला भी हो सकता है। इस प्रकार से ये तृतीय भंग के ३ अवान्तरभंग है 'एवं सुक्किल्लेण वि समं इसी प्रकार से शुक्ल वर्ण के साथ भी ३ भंग हो जाते हैं जो इस प्रकार से हैं-स्यात् कालश्च शुक्लश्च१, स्थात् कालश्च शुक्लौ चर પીળા વણ સાથે જે ત્રણ ભંગ બને છે તે હવે બતાવવામાં मांव छ. 'सिय कालए य हालिदए य' को प्रमाणे मने छ. तर ५५ मनमा वाम मावा छे. मे वात 'एवं हालिइएण वि समं भंगा' मा सूत्राश्री सतावत छ. 'सिय कालए य सिय हालिहए य सिय कालए य हालिहगा य सिय कालगा य हालिहंगा य' न्यारे 4 वाजानी સાથે પીળા વર્ણને રાખીને ભંગ બનાવવામાં આવે છે ત્યારે પહેલે ભંગ 'स्यात् कालः स्यात् पीतः' मेव! मन छ. मामा ३ प्रशवाणाधना પહેલો પ્રદેશ કાલા વર્ણવાળો હોય છે અને બીજે પ્રદેશ કે જે બે પ્રદેશની એકત્વની વિવક્ષાથી એક માનવામાં આવેલ છે.-પીળો પણ હોઈ શકે છે. અને બીજા ભંગમાં એક પ્રદેશ કાળા વર્ણવાળ હોય છે અને બીજા બે પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળા પણ હોઈ શકે છે ત્રીજા ભંગમાં બે પ્રદેશો કાળા વર્ણ વાળા હોય છે. અને ત્રીજો પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળો હોય છે. એ રીતે આ त्री ना ३ भवान्तर सगे छे. 'एव सुक्किल्लेण वि समं मे प्रमाणे
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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