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________________ भगवतीसूत्र द्विवर्ण:-वर्णद्वयवान् तदा एकः प्रदेशः कृष्णः अपरस्तु कृष्णातिरिक्तो नीलादिः, 'सिय कालए य सिय नीलए य' स्यात् कृष्णश्च स्यात् नीलच, द्विसंयोगे दशभङ्गा त्रिमदेशिकस्कन्धे कथितास्तेषां प्रत्येकस्य त्रयो भङ्गाः कर्तव्याः तत्र प्रथम भङ्गे स्यात् कृष्णश्च स्यात् नीलश्च, अन्न नीलादं कृष्णेतरसझलरूपस्य परिचायकम् १ 'सिय कालए य नीलया य' स्यात् कृष्णश्च नीली चेनि द्वतीयो भङ्गः । 'सिय कालगाय नीलए य' स्यात् कालकौ च नीलचेति तृतीयो भङ्गः ३ । द्विवर्ण___ 'जह दुवन्ने सिय कालए सिय नीलए य' यदि वह त्रिमदेशी स्कन्ध दो वर्णों वाला है तो इस दो वर्णों वाले होने के सामान्य कथन में इस प्रकार से वह दो वर्णों वाला हो सकता है-एक प्रदेश उसका काला हो सकता है और दूसरे दोनों प्रदेश उसके कृष्णवर्ण से अतिरिक्त नीलादि वर्ण वाले हो सकते हैं यहां 'लिय नीलए य 'पाठ में दोनों प्रदेशों को एक रूप से विवक्षित किया गया है द्विक संयोग में जो दश भंग द्विमदेशिक स्कन्ध के प्रकट किये गये हैं उन्हीं दस भंगों में से यहां एक भंग के ३-३ भंग और होते हैं इस प्रकार यहां द्विकसंघोगी भंग कुल ३० हो जाते हैं जो इस प्रकार से हैं-सिय कालए य सिय नीलए य' यह प्रथम भंग है इस प्रथम भंग में प्रथम अंश कदाचित् काला भी हो सकता है और द्वितीयांश कदाचित् नीलादि रूपवाला भी हो सकता है-यहाँ नील पद कृष्ण से इतर सकलरूप का परिचायक है प्रथम भङ्ग का द्वितीय अवान्तरभंग-'सिय कालए य नीलए य' यह है ३५थी परिणभी श छ. 'जइ दुवण्णे सिय कालए सिय नीलए य' ते त्रय પ્રદેશવાળે અંધ બે વર્ણવાળ હોય તે તે બે વર્ણવાળા હવાના સામાન્ય કથનમાં આ રીતે તે બે વર્ણવાળો હોઈ શકે છે.–તેને એક પ્રદેશ કાળે હોઈ શકે છે. અને બીજા બે પ્રદેશ કાળા વર્ણથી જુદા નીલાદિ વર્ણવાળા हाई श छे. महियां 'सिय नीलए य' मा ५४मा भन्ने प्रशान मे ३५थी વિવક્ષિત કર્યા છે. દ્વિક સંગમાં જે દસ ભેગે ત્રણ પ્રદેશ સ્કંધના બતાવ્યા છે, તે જ દસ બંનેમાંથી અહિયાં એક ભંગના ત્રણ ત્રણ અંગે બીજા થાય છે. એ રીતે અહિયાં હિક સંજોગી કુલ ભંગે ૩૦ ત્રીસ બને छ. २ मा प्रभारी छे. 'सिय कालए य सिय नीलए य' मा ५3 am છે. આ પહેલા ભાંગમાં પ્રથમ અંશ કદાચિત્ કાળો પણ હોઈ શકે છે અને બીજો અંશ કદાચિત્ નીલ વર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. અહિયાં નીલ પદ કાળાથી બીજુ સકલ રૂપને બતાવવાવાળું છે. પહેલા ભંગના બીજા અવાન્તર 'सिय कालए य नीलए य' मा प्रमाणे छे. मनत्रीले मातरम"सिय
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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