SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६.. भगवतीस तवथ प्रसन्नतादि प्रयोजकबै क्रियशरीरा मावादेवापासादीयः कारणाभावे कार्याभावस्यत्सर्गिकत्वादिति भावः । पुनः मनयन् आह - ' से के!' इत्यादि । 'से केणद्वेगं भंते । एवं च ' तत्केनार्थेन खलु भदन्त । एवमुच्यते 'तत्थ णं जे से वेन्सिरीरे तंत्र जाव पडिरूने' वन खलु यः स वैक्रियशरीरस्तदेव यावत् प्रतिरूपः, अत्र यावत्पदेन संपूर्णस्य उत्तरवाक्यस्यानुवादः कृतो भवतीति । भगवानाह - 'गोयमा !' इत्यादि ! 'गोयमा !" हे गौतम! 'से जहानामए' तद्यथा नामकः 'इह मणुगलोगंसि' इह मनुष्यलोके 'दुवे पुरिसा भवदि' ही पुरुषौ भवतः 'एगे पुरिसे अलंकियविभूलिए' एकः पुरुषोऽलंकृतविभूषितः अलंकृतोऽलंकारातात्पर्य यह है कि जिस असुरकुमारदेव के वैक्रमवारीर नहीं होता है मनेाहरत्वादिगुणों से युक्त नहीं होता है । इस कारण प्रसन्नतादि का प्रयोजक जो वैक्रिपशरीर है, उसका उसके अभाव होने के कारण ही वह अप्रासादीय है क्योंकि कारण के अभाव से कार्य का अभाव स्वाभाविक रहता है । - अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं । 'से केणहें भंते ! एवं बुच्चइ' हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि 'तत्थ णं ज़े से वेडसरीरे तं चेष जाव पडिरूत्रे' जो असुरकुमारदेव वैक्रिय शरीरवाला है वह यावत् प्रतिरूप है यहां यावत् पदसे समस्त उत्तरवाक्य का अनुवाद कर लेना चाहिये | ऐसा प्रकट किया गया है । उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'से जहानामए हह मणुपलो सि' जैसे इस मनुष्यलोक में 'दुवे पुरिसा भवंति कोई दो 'पुरुष हो' 'एगे पुरिसे अलंकि विभूसिए' एक पुरुष अलंकार आदि से કહેવાતુ' તાત્પય એ છે કે-એ અસુરકુમાર દેવને વૈક્રિય શરીર હાતુ નથી, અને મનહર આદિ ગુણુાવાળા હાતા નથી. તેથી પ્રસન્નતાનું પ્રત્યેાજ જે વૈકિય શરીર છે તેને તેને અસાવ હાવાથી તે અપ્રાસાદીય હાય છે. કેમકે કારણના અભાવમાં કાના અભાવ સ્વાભાવિક રીતે જ હાય છે. ફરીથી गौतम स्वामी प्रभुने मेवु छे छे - " से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ" हे भगवन् आप शा अरथी मे । । "तत्थ णं जे से वेव्वियसरी रे संचेत्र जाव पडिरूवें' ने असुरकुमारदेव चैम्यि शरीरवाणी होय छे, ते यावપ્રતિરૂપ છે, અહિયાં યાવત્પન્નથી સઘળા ઉત્તર વાકચના પાઠના સ'ગ્રહ કરી लेवे। या अश्नना उत्तरमा अलु हे छे - " गोयमा !" हे गौतम ! " से जहा नाम इह मणुयलोसि" प्रेम आा मनुष्य बेोभां "दुवे पुरिसा - भवंति” अर्ध पुरुष डे “एगे पुरिसे अलंकियविभूसिए" ते चैङि ४ पुरुष असार
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy