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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०३ सू०१ प्राणांतिपातादि आत्मपरिणामनि० ५३३ गर्भे उत्पद्यमानस्य जीवस्य परिणामो वक्तव्यः 'एवं जहा' इत्यादिना सूचितं भवति तथा च गर्भ व्युत्क्रामन् जीवः 'कइरसं कइफासं परिणामं परिणमई कतिरसं कतिस्पर्श परिणाम परिणमति, हे भदन्त ! गर्भ समुत्पद्यमानो जीवः कतिवर्णकतिगन्धकतिरसकतिस्पर्श परिणामयुक्तः परिणमति समुत्पद्यते इति प्रश्न: द्वादशशते, उत्तरमाह-'गोयमा ! पंचवन्नं दुगंध पंचरसं अहफासं परिणाम परिणमई' इत्यादि, हे गौतम ! पञ्चवर्ण द्विगन्धं पश्वरसम् अष्टस्पर्श परिणाम परिणमति, पश्चवर्ण-द्विगन्धपश्चरसाष्टस्पर्शयुक्तशरीरतादात्म्यभावमागतो जीवः समुत्पद्यते इत्युत्तरम् कियत्पर्यन्तं द्वादशशतकीयप्रकरणमिहवक्तव्यं तबाह'जाव' इत्यादि, 'जाव कम्मो णं जए' यावत्कर्मतः खलु जगत् 'गो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमई' नो अर्मतः विभक्तिभावं परिणमति जए, णो अम्मओ विभत्तिभावं परिणमह' हे गौतम ! द्वादश शतक में पञ्चमोद्देशक में जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर भी गर्भ में उत्पन्न होते हुए जीव का परिणाम वर्णादि से युक्त जानना चाहिए तथा च-गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव ! हे भदन्त ! कितने वर्षों वाला कितनी गंधो वाला कितने रसोबाला और कितने स्पशों वाला उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु उसी द्वादश शतक में ऐसा कहते हैं 'पंचवन्नं, दुगंध, पंचरलं, अट्ठफासं परिणामं परिणमह' हे गौतम ! पंचवर्ण, द्विगंध, पञ्चरस और आठस्पर्श से युक्त शरीर के साथ तादात्म्यसम्बन्ध वाला बना हुआ ,जीव गर्भ में उत्पन्न होता है यह छादश शतक के पंचम उद्देशक का प्रक्षरण यहां 'जाव क्षम्मओणं जए जो अकम्मो विभत्तिभावं परिणमइ' इस पाठ तक ग्रहण छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रा ४ छ -'एवं जहा बारसमसए पंचमहेसे जाव करमओ णं जए,णो अकम्मो विभत्तिभावं परिणमई' गौतम मारमा શતકના પાંચમા ઉદ્દેશામાં જેવી રીતે કહેવામાં આવ્યું છે, તે જ રીતનું સઘળું કથન અહિયાં ગર્ભમાં ઉત્પન્ન થનારા જીવના પરિણામ વર્ણાદિવાળું સમજવું જોઈએ. તે આ રીતે છે. ગૌતમ સવામી પ્રભુને પૂછે છે કે-ગર્ભમાં ઉત્પન્ન થનારા જીવ હે ભગવન કેટલા વર્ષોવાળા કેટલા ગંધવાળા કેટલા રસોવાળા અને કેટલા સ્પર્શીવાળા ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં એ બારમાં शतभा प्रभु भा प्रमाणे ४३ छ.-'पचवन्नं, दुगंध पंचरस, अदुफासं, परिणाम परिणमई' गौतम पाय व मे गध, पाय २५ मते मा २५ શરીરની સાથે તાદાભ્ય સંબંધવાળા બનેલ જીવ ગર્ભમાં ઉત્પન્ન થાય છે. मा मारमा शतना पायwi देशानु ४२५ भाडयां 'जाव कम्मओ गंजए
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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