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________________ ४७. ... भगवतीस्त्र ग्रहणं भवति एतादृशविशेषणविशिष्टो गौतमः किमवादीत् तत्राह-'सिय' इत्यादि, 'सिय भंते !' स्याद् भदन्त ! अन स्यादिति अध्ययं तिङन्तमतिरूपकं संभवेदित्यर्थकम् , 'जाव चत्तारि पंच बेइंदिया' यावत् चत्वारः पञ्च द्वीन्द्रिया जीवाः यावत्पदेन द्वयोस्त्रयाणां संग्रहः, तथा च द्वौ वा त्रयो वा चत्वारः पञ्च वा द्वीन्द्रिया जीवा इत्यर्थः 'एगयओ' एकत:-एकीभूय-संयुज्येति यावत् , 'साहारण सरीरं' साधारणशरीरम् 'बंधंति' वध्नन्ति अनेकजीवसामान्यम् अनेकजीवो. पभोग्यम्-अनेकजीवभोगाधिष्ठानमिति यावत् बध्नन्ति प्रथमतया तत् मायोग्य. पुद्गलग्रहणतः कुर्वन्तीत्यर्थः । 'बंधित्ता' एकतो मिलित्वा-साधारणशरीरं बवा टीनार्थ--'रायगिहे जाव एवं पयासी' यहां यावत्पद से 'भगवान् का समवसरण हुआ' यहां से लेकर 'प्राञ्जलिपुटवाले गौतम ने ' यहां तक का प्रकरण गृहीत हुआ है तथा च-राजगृहनगर में प्रभु का समवस. रण हुआ प्रभुका आगमन सुनकर परिषद् धर्म का व्याख्यान सुनने के लिये उनके पास आई प्रभु ने धर्म का उपदेश दिया धर्मोपदेश सुनकर परिषद् विसर्जित हो गई इसके बाद पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट गौतम ने प्रभु से इस प्रकार पूछा-- ___लिय भंते ! जाय चत्तारि पंच वेइंदिया एगयो साहारणसरीरं बंधति' 'सिय' स्यात् यह पद तिङन्त प्रतिपक अव्यय है और इसका अर्थ संभव हो सकता है' ऐसा है 'जाय चत्तारि' में आगत यावत्पद से 'दो और तीन' का संग्रह हुआ है तथा च-दो अथवा तीन, अथवा चार अथवा पांच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर अनेक जीवोपभोग्य साधारण शरीर का बन्ध करते हैं ऐसी बोत क्या संभवित हो सकती है ? तथा-एकत्रित An:-रायगिहे जाव एवं वयासो' डनगरमा सामाननु समવસરણ થયું. પ્રભુનું આગમન સાંભળીને પરિષદુ પ્રભુને વંદના કરવા તેઓ પાસે આવી. પ્રભુએ ધર્મદેશના આપી ધર્મદેશના સાંભળીને પરિષદ્ પ્રભુને વદન નમસ્કાર કરીને પિતા પોતાને સ્થાને પાછી ગઈ તે પછી ગૌતમ સ્વામી मन्ने थ R. In or विनयथी प्रभुने ॥ प्रभाचे पूछ्यु'. 'सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच बेइदिया एगयओ साहारणसरीरं बंधति' महियां 'सिय' 'स्यात्' से तिब्न्त प्रति३५४ भव्यय छे. अनेम सम 3 श छे. से प्रभारी छ. 'जाव चत्तारि' मा मास यावत्पथी में भने त्रय यड કરાયા છે. બે અથવા ત્રણ અથવા ચાર અથવા પાંચ બે ઈન્દ્રિય જી મળીને અનેક જીવોને ભેગવવા લાયક સાધારણ શરીરને બંધ કરે છે? એવી વાત
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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