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________________ भंगवतीसूत्र करणं प्रज्ञप्तम्-कथितस् तत्र क्रियते-निष्पद्यते कार्य येन तत् करणम् साधकतमम् क्रियां मति असाधारणं कारणमिति यावत् , अथवा क्रियते यत् तत् करणम्-कृतिः करणं क्रियामात्रम् अथ यदि क्रियैव करणं तदा करणनिवृत्त्योः को भेदः करणमपि- क्रियारूपं : निर्वृत्तिरपि क्रियारूपैव ? इति चेत् अत्रोच्यते-करणम्-आरम्भक्रिया, निवृत्तिस्तु कार्यस्य निष्पत्ति स्त्येितावतैव करणनिष्पयोर्भेद इति, तथा च- एतादृशं करणं पञ्चविधमिति । पञ्चभेदानेव दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि 'तं जहां तद्यथा-'दयकरण' द्रव्यकरणम्-द्रव्यरूपं करणमिति द्रव्यकरणं यथा यते कार्य येन तत् करण' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिससे कार्य निष्पन्न होता है वह करण है अर्थात् कार्य की निष्पत्ति में जो असा. धारण कारण होता है वह करण है अथवा-क्रियते यत् तत् करणम् इस भाषव्युत्पत्ति के अनुसार जो कृति, करण और क्रियामात्र है वही करण है यहां इस व्युत्पत्ति के मानने पर ऐसी शंका हो सकती है, कि यदि क्रिया को ही करण माना जाता है फिर करण में और निवृत्ति में कोई अन्तर ही नहीं रहता है क्योंकि दोनों में क्रियारूपता ही रहती है अर्थात करण भी क्रिया रूप होता है और निवृत्ति भी क्रियारूप होती है तो ऐसी इस शंका को समाधान इस प्रकार से है-आरम्भ क्रिया का नाम फरण है और कार्य की निष्पत्ति हो जाने का नाम निर्वृत्ति है यह इन दोनों में अन्तर है इस प्रकार का यह करण पांच प्रकार का कहा गया है-वे भेद उसके ऐसे हैं 'दव्यकरण' १ द्रव्यकरण-द्रव्य. करण-द्रव्यरूप जो करण है वह द्रव्यकरण है जैसे कुठार आदि अथवा "क्रियते निष्पाद्यते कार्य येन तत् करणं' या व्युत्पत्ति प्रभारी नाथी आय ४२॥ તે કરણું છે. અર્થાત્ કર્મની નિષ્પત્તિમાં જે અસાધારણ કારણ હોય છે. તે ४२ छ. 'क्रियते यत् तत् करणम्' मा सा०युत्पत्ति प्रमाणे रे ति, ४२५ અને ક્રિયા માત્ર છે, તેજ કરણ છે. આ વ્યુત્પત્તિ માનવામાં આવે તે એવી શકા થાય છે કે-જે ક્રિયાને જ કરણ માનવામાં આવે તે પછી કરણમાં અને નિવૃત્તિમાં કઈ ફેરજ રહેતું નથી, કેમ કે એ બન્નેમાં ક્રિયાપણું જ રહે છે. અર્થાત્ કરણ પણ ક્રિયા રૂપ જ હોય છે. અને નિવૃત્તિ પણ ક્રિયા રૂપ જ હોય छ. मातुं समाधान मा प्रमाणे छे. मान लियानु नाम ३२ छे. અને કાર્યની નિષ્પત્તિ થઈ જાય તેનું નામ નિવૃત્તિ છે. આ બંનેમાં એ જ અંતર છે. આ રીતનું આ કરણ પાંચ પ્રકારનું બતાવેલ છે. તેના તે हा- प्रभा-छ.-'दंव्धकरण' द्रव्य४२ द्रव्य३५थी २ ४२५ ते य
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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