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________________ भगवतीने मन:पर्ययज्ञानानां संग्रहो भरति तथा च मतिज्ञाननिवृतिः, श्रुतज्ञाननिवृचिः, अवधिज्ञाननि त्तिः, मनःपर्यवज्ञान निर्वृत्तिः, केवलज्ञाननिवृतिश्चेति ज्ञाननिवृत्तयः पञ्च कथिता इति । 'एर्गिदियवज्जं जात्र वेमाणियाणं' एवमेकेन्द्रियवर्ज यावद्वैमानिकानाम् एकेन्द्रियान् परित्यज्य नारकादारभ्य वैमानिकपर्यन्तजीवानामिमा ज्ञाननिर्वृतो भवन्ति किन्तु सर्वेषां सर्वा ज्ञाननिवृत्तिर्न भवति तहिं किम् ? तत्राह - 'जस्स जह णाणा' यस्य यानि ज्ञानानि यस्य यादृशं ज्ञानं भवति तस्य जीवविशेषस्य तादृशमेव मत्याद्यन्यतमज्ञानं वक्तव्यमिति भावः | १६ | ज्ञाननिवृत्ति विरोधिनीम् अज्ञाननिवृतिदर्शयन्नाह - 'कविहा णं' इत्यादि, 'कइविहा णं भंते' णाणनिव्वसी०' आमिनिबधिक ज्ञाननिवृत्ति यावत केवलज्ञान निर्वृत्ति ये पांच इसके भेद हैं यहां यावत्पर से अनज्ञाननिवृत्ति, अवधिज्ञान निवृत्ति मनः पर्यवज्ञाननिवृत्ति इन तीन निर्वृत्तियों का ग्रहण हुआ है । 'एगिंदियवज्जं जाव वैमाणिषाणं ' एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय यह ज्ञाननिवृत्ति नाशक से लेकर वैमानिक तक के समस्त संसारी जीवों में होती है परन्तु विशेषता केवल इतनी सी ही है कि सब ज्ञाननिनिसियां सब को नहीं होती है किन्तु जिन जीवों के जो मत्यादिक ज्ञान होते हैं वही निवृत्ति उसके होती है एक ज्ञान यदि होता है तो वह केवलज्ञान होता है दो ज्ञान होते हैं तो वे मतिज्ञान और श्रुनज्ञान होते हैं तीन ज्ञान यदि होते हैं तो वे प्रतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं और चार ज्ञान यदि होते हैं तो वे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान होते हैं। इस प्रकार से जिस जीव को जो ज्ञान होता है उस जीव को उसी ज्ञान की निरृत्ति होती है ज्ञाननिवृत्ति की विरोधिनी अज्ञाननिर्वृत्ति है ४४२ નિવૃત્તિ, શ્રુતજ્ઞાનનિવૃત્તિ, અવધિજ્ઞાન નિવૃ†ત્તિ મનઃવજ્ઞાન નિવૃત્તિ કેવળ ज्ञान निर्वृत्ति मे रीते ज्ञाननिवृत्ति यांय अारनी है. 'एगिदियवज्जं जाव वैमाणियाणं' येडेन्द्रियलवाने होडीने नारथी मारलीने वैभानिठो सुधीना સઘળા સ’સારી જીવાને આ જ્ઞાનવૃિત્તિ હોય છે. પરંતુ વિશેષતા એજ છે કે-મધી જ્ઞાનનિવૃત્તિ બધાને હોતી નથી પરંતુ જે જીવાને જે મતિ વિગેરે જ્ઞાન હોય છે, તેજ નિવૃત્તિ તેને હોય છે એક જ જ્ઞાન હોય તા તે કેવળ જ્ઞાન જ હોય છે. એ જ્ઞાન હોય તે તે મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન એ એ જ્ઞાન હોય છે. જો ત્રણ ન હોય તેા મતિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અને અવિધજ્ઞાન હોય છે. અને જો ચાર જ્ઞાન હોય તેા પ્રતિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, અને મનપવજ્ઞાન હોય છે. આ રીતે જે જીવને જે જ્ઞાન હોય છે, તે જીવને તેજ જ્ઞાનનિવૃત્તિ હાય છે,
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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