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________________ भगवतीस्त्रे निव्वत्ती' असत्यामृषाभाषानिवृत्तिः, 'एवं एगिदियवज्ज' एवमेकेन्द्रियवर्जस् 'जस्स जा भासा' यस्य या भाषा सा भणितव्या, कियत्पर्यन्तं जीवानां भाषा भणितव्या, तबाह-'जात्र वैमाणियाण" यावद्वैमानिकानाम् सत्यादिभेदेन भाषा चतुर्विधा सा च एकेन्द्रियाणां जीवानां वर्जयित्वा जीवमात्रस्य भवति एकेन्द्रियाणां भाषाया अभावात् इयं च भाषा एकेन्द्रियवर्जितजीवमात्रस्य भवतीति।५। 'कहविहाणं भंते ! मणनिव्वती पन्नत्ता' कतिविधा खल्ल भदन्त ! मनोनित्तिः प्रज्ञप्ता ? मनोनितिः कतिप्रकारा इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चउनिहा मणनिम्नत्ती पन्नत्ता' चतुर्विधा मनोनित्तिः मृषाभाषानिवृत्ति 'सच्चामोसा भासानिव्वत्ती' सत्यमृषा भाषानिवृत्ति और 'अलच्चा मोसा भासा निव्वत्ती' असत्याभूषा भाषा निवृत्ति एवं एगिदियवज्ज' इस प्रकार ले एकेन्द्रिय जीव को छोडकर यावत् वैमा. निकपर्यन्त जीवों के जिस जीव के जो भाषा होती है उस जीव को उस भाषा की निवृत्ति कह लेनी चाहिये यहाँ एकेन्द्रिय जीव को भाषा नहीं होती है इसलिये भाषा निवृत्ति में उनको ग्रहण नहीं करने के लिये कहा गया है इस प्रकार सत्यादि के भेद से चार प्रकार की भाषा एकेन्द्रिय जीव के सिवाय जीव मात्र को होती है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'कहविहो णं भंते ! मणनिः व्यत्ती पण्णत्ता' हे भदन्त ! मनोनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! चउविहा मणनिवत्ती पण्णत्ता' हे गौतम ! मनोनिवृत्ति चार प्रकार की कही गई हैं । 'तं जहा' जैसे-- निवृत्ति, भृषा भाषा निति 'सच्चामोसा भासानिव्वत्ती' सत्या भृषा मापा निति भने 'असच्चामोसा भासानिव्वत्ती' असत्या मृषा मापा निवृत्ति 'एवं एगिदियवजं जस्स जा भासा जाव बेमाणियाण' सशत सन्द्रिय व. છેડીને યાવત વૈમાનિક પર્યન્તના જીવને જે ભાષા હોય છે, તે જીવને તે ભાષાની નિવૃત્તિ કહી લેવી. અહિયાં એકેન્દ્રિય જીને ભાષા હોતી નથી. તેની ભાષા નિવૃત્તિમાં તેઓને ગ્રહણ કરવાને નિષેધ કરવામાં આવેલ છે. આ રીતે સત્યાદિ ભાષાના ભેદથી એકેન્દ્રિય જીવ સિવાયના અન્ય જીવમાત્રને ચાર પ્રકારની ભાષા હોય છે. ૫ शथी गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे है-'कइविहाणं भते ! मणनिव्वत्ती पण्णत्ता' भगवन् मनानिवृत्ति प्रानी अवाम मावी छ १ तना उत्तरमा प्रभु ४३ छ -'गोयमा! चउव्विहा मणनिव्वत्ती पण्णत्ता'
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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