SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका शे०१९ उ०८ सू०१ जीवनिर्वृत्तिनिरूपणम् ४३९ शरीराणि वान्येव शरीराणि तस्य ज्ञातव्यानि न तु पञ्चविधाऽपि शरीरनिवृत्तिः सर्वेषां जीवानामिति विवेकः ।३। 'कइविहा णं भंते ।' कतिविधा खलु भदन्त ! 'सबिदियनिव्वत्ती पनत्ता' सर्वेन्द्रियनितिः प्रज्ञप्ता निर्वर्तनं निर्वृत्ति:निष्पत्तिः, सर्वेन्द्रियतया-सन्द्रियाकारेण निर्वृत्तिरिति सर्वेन्द्रियनिवृत्तिः सा कतिविधेति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा सविदियनिव्वती पन्नत्ता' पञ्चविधा सर्वेन्द्रियनिवृत्तिः प्रज्ञप्ता 'तं जहा' कार्मण और वैक्रिय ये ३ शरीर होते हैं अतः इन तीन शरीरों की निवृत्ति उनके होती है इसी प्रकार से देवों के भी जानना चाहिये मनुष्य और तिर्यश्चों के तैजस कामंग और औदीरिक शरीर होता है अतः इनके इन शरीरों की नित्ति जाननी चाहिये यही बात 'नवरं' इत्यादि सूत्र पाठ द्वारा प्रकट गई है। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'काविहा णं माते ! सवें दियनिवत्ती पण्णत्ता सर्वेन्द्रिय निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? समस्त इन्द्रियों के आकाररूप में जो रचना है उसका नाम सर्वेन्द्रिय निवृत्ति है । तात्पर्य कहने का यह है कि आत्मा के एवं पुद्गलों के प्रदेशों की जो तत् तत् इन्द्रियरूप से रचना हो रही है उसका नाम सर्वेन्द्रिय निवृत्ति है ऐली यह सन्द्रिय निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रक्षु कहते हैं-'गोयमा! पंचविहा सब्धिકાર્પણ અને વૈક્રિય એ ત્રણ શરીરે હેય છે. તેથી તેઓને એ ત્રણ શરીરની નિત્તિ હોય છે. એ જ રીતે દેવોના વિષયમાં પણ સમજી લેવું. મનુષ્ય અને તિર્થને તૈજસ, કાર્મ, અને ઔદારિક શરીર હોય છે. તેથી તેઓને તે તે શરીરની નિવૃત્તિ સમજી લેવી. એજ વાત “નવી ઈત્યાદિ સૂત્રપાઠથી બતાવેલ છે हवे गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे -'काविहा णं भवे! सन्वेंदियनिवत्ती पण्णत्ता' भगवन् सन्द्रिय निवृत्ति पानी डपामा । આવી છે? સઘળી ઈદ્રિના આકાર રૂપે શરીરની જે રચના છે તેનું નામ સર્વેન્દ્રિય નિવૃત્તિ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-આત્માની અને પુલના પ્રદેશની તે તે ઈન્દ્રિય રૂપથી જે રચના થાય છે તેનું નામ સન્દ્રિય નિવૃત્તિ છે. તેવી આ સન્દ્રિય નિવૃત્તિ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ-'गोयमा! पंचविहा सव्वि दियनिव्वत्ती पण्णत्ता'
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy