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________________ ४२५ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिवृत्तिनिरूपणम् इतः पूर्वं जीवनिर्वृत्तिरुक्ता अथ-जीवकार्यजीवधर्मापेक्षया निवृत्तिमाह'कइविहा णं' इत्यादि, ____ 'कइविहाणं भंते' कतिविधा खलु भदन्त ! 'कम्मनित्यत्ती पन्नत्ता' कर्मनित्तिः मज्ञप्ता, निवृत्तिः-संपादनम् कर्मणां निवृत्तिः-संपादनम् कर्मनिवृत्तिः सा च कतिविधेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्टः विहा कम्मनिव्वत्ती पनत्ता' अष्टविथा कर्मनिवृत्तिः प्रज्ञप्ता । प्रकारभेदमेव दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'नाणावरणिज्जकम्मनिवत्ती ज्ञानावरणीयकर्मनिवृत्तिः, 'जाव अंतराइयकम्मनिबत्ती' यावत् अन्तरायकर्मनिवृत्तिः, अत्र यावत्पदेन दर्शनावरणीय-वेदनीय-मोहनीया-युष्क-नामगोत्राणां ग्रहणं भवति तथा च ज्ञानावरणीयादि भेदेन भष्टप्रकारिका कर्मनिवृत्तिः कथिता नित्ति। अब गौतम प्रभु ले कर्मनिवृत्ति के विषय में 'कइविहाणं भते! कम्मनिव्वत्ती पण्णत्ता' हे भदन्त ! कर्मनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? ऐला पूछते हैं जीव के राग द्वेषादिरूप अशुभ भावों के निमित्त से जो कार्मण वर्गणाएं ज्ञानावरणीयादिरूप परिणाम को प्राप्त होती हैं उसका नाम यहां कर्मनिवृत्ति है यह कर्म जीव के रागद्वेषादि द्वारा किया जाता है अतः उस कर्मकी निवृत्ति के विषय में-संपादन के विषय में गौतम ने ऐसा यह प्रश्न किया है-उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! अट्टविहाकम्मनिव्चत्ती पण्णत्ता' हे गौतम! कर्मनिवृत्ति आठ प्रकार की कही गई है 'तं जहा' जसे 'नाणावरणिज्जकम्मनिवत्ती जाव अंतराइय. कम्मनिव्वत्ती' ज्ञानावरणीय कर्मनिवृत्ति यावत् अन्तरायकर्मनिवृत्ति यहां यावत्पद से दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्क, नाम और गोत्र इन कर्मों का ग्रहण हा है इस प्रकार ज्ञानावरणीय दर्शना. પ્રકારની કહી છે? જીના રાગદ્વેષ વિગેરે રૂપ અશુભ ભાવના નિમિત્તથી જે કાશ્મણ વર્ગણાઓ જ્ઞાનાવરણય વિગેરે રૂપ પરિણામને પ્રાપ્ત થાય છે. તેનું નામ અહિયાં કર્મનિવૃત્તિ છે. જીવને કર્મ રાગદ્વેષાદિ દ્વારા કરવામાં અાવે છે. તેથી તે તે કમની નિવૃત્તિના વિષયમાં સંપાદનના વિષયમાં ગૌતમ સ્વામીએ AL प्रश्न रेख छ.तना उत्तरमा प्रभु से छे -'गोयमा! अदुविहा कम्मर गौतम ! मनिवृत्ति मा प्रा२नी अवाम मावी छ. 'तंजहा' ते मा प्रभारी छ. 'णाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती जाव अंतराइयकम्मनिव्वत्ती' ज्ञानावरणीय કર્મનિવૃત્તિ, દર્શનાવરીય કર્મ નિવૃત્તિ, વેદનીય કર્મનિવૃતિ, મેહનીય કે નિવૃત્તિ, આયુષ્ક કર્મ નિવૃત્તિ, નામકર્મનિવૃત્તિ, ગેત્રકર્મનિવૃત્તિ અને भ० ५४
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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