SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२२ भगवतीसूत्र कथिता इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा पन्नत्ता' पञ्चविधा पञ्चपकारा प्रज्ञप्ता, तमेव पञ्चभेदं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'पुढवीकाइयएगिदियजीवनिमत्ती' पृथिवीकायिकैकेन्द्रियजीवनिवृत्तिः 'जाव वणस्सइकाइयएगिदियजीवनिबत्ती' वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियजीवनिवृत्तिा, अत्र यावत्सदेन अप्तेजोवायूनां संग्रहो भवति तथा पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिजीवनित्तिभेदेन पश्चमकारा एकेन्द्रियजीवनिर्वत्तिर्भवतीति भावः । 'पुढवीकाइयएगिदियजीवनिबत्ती णं भंते' पृथिवीकायिकैकेन्द्रियजीवनिवृत्ति खल भदन्त। 'काविहा पनत्ता' कविविधा प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' में प्रभुने कहा है 'गोयमा! पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! एकेन्द्रियजीवनिवृत्ति पांच प्रकार की कही गई है-'तं जहाँ' जैसे-'पुढविका. इय एगिदियजीवनिव्वत्ती जाव वणस्सहकाइयएगिदियजीवनिव्वत्ती' पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति, यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीवनिर्वृत्ति यहां यावत्पद से 'अप, तेज, वायु' इन एकेन्द्रिय जीवों का ग्रहण हुआ है इस प्रकार पृथिवी, अप, तेज, वायु और धनरूपतिजीव की निवृत्ति के भेद से एकेन्द्रिय जीव की निवृत्ति पांच प्रकार की होती है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पुढविक्काइयएगिदियजीव. निव्धत्ती णं भते कइविहा पन्नत्ता' हे भदन्त ! जो पृथिवीकायिक एके. न्द्रियजीवनिर्वृत्ति है वह कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभु उत्तरभा प्रभु के छ -'गोयमा! पंचविहा पण्णत्ता' गीतमन्द्रिय ७१ निवृत्ति पांय हानी उमा माती छ. 'तंजहा' रेभ है 'पुढवीकाइया एगिदियजीवनिवत्ती जाव वणस्सइकाइय एगिदियजीवनिव्वती' पृश्निायि એકેન્દ્રિય જીવ નિવૃત્તિ, યાવત્ વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય જીવનિર્વત્તિ, અહિયાં થાવત્ પદથી અખાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક આ એકેન્દ્રિય જીવે ગ્રહણ કરાયા છે, એ રીતે પૃથ્વીકાયિક, અષ્કાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક જીવની નિવૃત્તિના ભેદથી એકેન્દ્રિય જીની નિવૃત્તિ પાંચ પ્રકારની થાય છે. व गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे है-'पुढवीकाइयएगिंदियजीव निबत्ती ण' भवे ! काविहा पण्णत्ता' मा २५ यि सन्द्रिय ७१ નિવૃત્તિ છે, તે કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy