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________________ भगवतीसरे पेक्षया परमाः स्वनितकुमारा अल्पकर्माणोऽल्पक्रिया अल्पासवा अल्पवेदनाश्च तथा परमस्तनितकुमारापेक्षया चरमाः स्तनितकुमाराः महाकर्मतरा महाक्रियतरा महानवतराः महावेदनतराश्वेति 'पुढवीकाइया जाव मणुस्सा एए जहा नेरइया' पृथिवीकायिका यावत् मनुष्याः एते यथा नैरयिकाः, पृथिवीकायिका एकेन्द्रिया मनुष्यपर्यन्ता नैरपिकवत् ज्ञातव्याः अन यावत्पदेन हीन्द्रियादित आरभ्य पञ्चे. न्द्रियतिर्यक्योनिकान्तानां संग्रहः एकेन्द्रियत आरभ्य पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकान्ताः मनुष्याच चरमेभ्य एकेन्द्रियादिभ्योऽपेक्षया परमा एकेन्द्रियादि मनुप्यान्ताः महाकर्मतरादि विशेषणाः तथा परमेश्य एकेन्द्रियादेरारभ्य मनुप्यपर्यन्तेभ्यश्चरमाः एकेन्द्रियादिमनुष्यान्ता अल्पकर्मादि विशेषणयुक्ता भवन्तीतिभावः 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा' वानमन्तज्योतिष्कवैमानिका यया कुमारों तक जानना चाहिये । चरम स्तनितकुमारों की अपेक्षा परम स्तनितकुमार अल्पकर्मवाले, अल्पक्रियावाले, अल्पआस्रववाले और अल्पवेदनावाले होते हैं । तथा परमस्तनितकुमारों की अपेक्षा चरम स्तनितकुमार महाकर्मकाले, महाक्रियावाले, महानववाले और महावे. दनावाले होते हैं । 'पुढचीकाझ्या जाव मणुस्सा.' पृथिवीकायिक एके न्द्रिय जीव यावत्पद गृहीत द्वीन्द्रिय जीव, तेइन्द्रिय जीव चौइन्द्रियजीव पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य ये सब परमपदवाले पक्ष में चरम एकेन्द्रियादिकों की अपेक्षा महाकर्मादिविशेषणों वाले होते हैं और चरम पद पक्ष में परम एकेन्द्रियादिकों की अपेक्षा अल्पकर्मादि विशेषणों वाले होते हैं । 'पाणमंतरजोइसिय०' वानव्यन्तर ज्योतिष्क एवं वैमा निक इसमें परम चरमपक्ष सम्बन्धी महाकर्मादि विशिष्ट होने का एवं अल्पकर्मादि विशिष्ट होने का सब कथन इस विषय को लेकर असुरકુમારના કથન પ્રમાણેનું સઘળું કથન યાવત્ સ્વનિતકુમાર સુધીમાં સમજવું. ચરમ સ્વનિતકુમારે કરતાં પરમ સ્વનિતકુમાર અલ્પકર્મવાળા, અપક્રિયાपाणी, मानववा अन अपवहनवाजा हाय छे. 'पुढवीकाइया जाव मणुस्सा०' वियि मेन्द्रिय ७१ यावत् ५४थी मन्द्रिय, &, त्रए ઈન્દ્રિયવાળા છે, ચાર ઈદ્રિયવાળા જી પાંચ ઈદ્રિયવાળા તિર્યંચ અને મન આ બધા પરમ પદવાળા પક્ષમાં ચરમ એકેન્દ્રિય વિગેરેની અપેક્ષાએ મહાકર્મ વિગેરે વિશેષવાળા હોય છે. અને ચરમ પદ પક્ષમાં પરમ એકેन्द्रियाविहीनी मपेक्षाथी ६५ विगैरे विशेषावा डाय छे. 'बाणमंतर. जोइसिय' पान०यन्तर न्याति भने वैभानिमा ५२म-१२म भन्ने पक्ष
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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