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________________ भगवतीसरे विपरीतं नारकसूत्रापेक्षयाऽसुरकुमारसूत्रे विपरीतं भणितव्यम् किं विपरीतम् ? इति सूत्रकार एवाह-परमा अप्पकम्मा चरमा महाकम्मा' परमा अल्पकर्माणः, चरमा महाकर्माणः, नैरयिकसने चरमेभ्यः परमाणां महाफर्मादित्वं परमेभ्यश्चरमाणां चाल्पकर्मादित्वं कथितम् , अत्रासुरकुमारसूत्रे च चरमेभ्यः परमाणाममकर्मादित्वं परमेभ्यश्चरमाणां च महाकर्मादित्वं वाच्यमिति दैपरीत्यम् , तथाहि'से नूनं भवे ! चरमेहितो अमुरकुमारेहितो परमा अमरकुमारा अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरियवरा चेव अप्पासवतरा चेव अप्पवेयणवरा चेव' इत्यादि । तद् नूनं- भदन्त ! चरमेभ्योऽसुरकुमारेभ्यः परमा असुरकुमारा अल्पकमतरा एव अल्पक्रियतरा एव अल्पासवरा एव अल्पवेदनतरा एव, एवं प्रश्न उत्तरं च णता है,वह इस प्रकार से है-विधीयं भाणियवं' नारफसूत्र में जैसा कथन किया गया है उसकी अपेक्षा असुरकुमार सूत्र में विपरीत कथन किया गया है और वह 'परमा अप्पकम्मा, चरमा महाकम्मा' इस सूत्र पाठ से प्रकट किया गया है तात्पर्य कहने का ऐसा है कि नैरयिक सूत्र में चरमों से परमों में महाकर्म आदि से युक्तता कही गई है तथा परमों से चरमों में अल्पकर्म आदि से युक्तता प्रकट की गई है, परन्तु असुरकुमार सूत्र में चरमों से परमों में अल्पकर्म आदि से युक्तता और परमों से चरमों में महाकर्म आदि युक्तना कही गई है यही बात-'से नूनं भंते ! चरमेहितो. असुरकुमारहितो परमा असुरकुमारा अप्पकम्मतरा व, अप्पकिरियतरा चेव. अप्पासवतरा' चेव अप्पवेयणतरा चेव' इत्यादि सूत्र पाठ बनाकर समझ लेना चाहिये । गौतम ने विशेषता छ, त मा अमाथे छ 'विवरीयं भाणियव्वं' ना२४ सूत्रभावी રીતનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, તે કથનની અપેક્ષાએ અસુરકુમાર સૂત્રમાં विपरीत ४थन ४अपामा माव्यु छे, ते ४थन 'परमा अप्पकम्मा, घरमा महा कम्मा' या सूत्रा४थी प्रगट ४२ छ. ४ानु तापय से छे है-२यि સૂત્રમાં ચરમ આયુષ્યમાંથી પરમાયુષ્ય વાળાઓમાં મહાકર્મ વિગેરેનું હોવાપણું કહ્યું છે. તેમ જ પરમાયુષ્કથી ચરમાયુષ્યવાળાઓમાં અલ્પકર્મ આદિનું હોવા પણું કહેલ છે. પરંતુ અસુરકુમાર સૂત્રમાં ચરમાયુકેથી પરમાયુષ્કમાં અલ્પ કર્મ આદિનું હોવાપણુ અને પરમાયુષ્કથી ચરમાયુષ્કમાં મહાર્મ વિગેરે होपापा ४डस छे. मे बात से नून भते! चरमेहितो! असुरकुमारहितोपरमा असुरकुमारा अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरियतरा चेव अप्पासवतरा चेव अप्पवेयणतरा चेव' त्या सूत्रा3 मतावान सभामा मायुं . छ. गौतम
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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