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________________ ૨ેટ૨ emedies ज़ाब 'अप्पवेयणतराए चैव 'एवमुच्यते यावत् अल्पवेदनतराश्चैत्र अत्र यावत्पदेन ''चरमेहितो नेरहपहिती परमा नेरइया महाकम्मतराए चैत्र महाकिरियतराष् चैव महासवतराए चैत्र महावेयणतराए चेत्र परमेहिंतो नेरइएहिंतो चरमा नेरहया अप्पकम्मतराए चेत्र अप्पकिरियतराए चेव अप्पासत्रतराए चेत्र' इत्यन्तस्य मकरणस्य ग्रहणं भवतीति, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'ठिई पडुञ्च', स्थितिमायुष्कं प्रतीत्य आश्रित्य ' एवं बुच जाव अप्पवेयणतग़ए चेव' एत्रमुच्यते यावत् अल्पवेदनतरा एत्र हे गौतम! स्थित्यपेक्षया कथयामि यत् चरमनारकेभ्यः परमाः नारकाः महाकर्मतरादिविशेषणयुक्ता भवन्ति तथा अब गौतम इस प्रकार से पूछते हे 'से केणदृणं भंते । एवं चुच्च जाब अप्पवेषणतराए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से करते हैं कि वे यात अल्पवेदनतर विशेषणचाले होते हैं ? यहां यावापद से 'चरमेहितो नेरहहितो परमा नेरख्या महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेषणतराए चेप, परमेहितो नेरहएहिंतो चरमा नेरइया अनकम्मतराए चेद, अप्पकिरियतराए चेव, अप्पासंवतराए चेव', इस पूर्वोक्त पाठ का ग्रहण हुआ है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-- 'गोपमा ! ठिहं पडुच्च एवं बुच्चह, जाव अपवेयणतराए 'चेव' हे गौतम | ऐसा पूर्वोक्तरूप से जो मैंने कहा है वह उनकी स्थिति को लेकर कहा है अर्थात् स्थिति की अपेक्षा परमनारक घरमनारकों से. महाकर्मतर आदि विशेषणोंवाले होते हैं तथा चरमनारक परमायुष्क A હુંવે ગૌતમ સ્વામી તેનું કારણ જાણવાની ઈચ્છાથી પ્રભુને એવુ” પૂછે छे.न.से. केणद्वेगं भंवे एवं बुच्चइ जाव अप्पवेयणतराए' हे लगवन् साथ એવું શા કારણથી કહેા છે કે તેઓ યાવત્ અલ્પ વેઇનતર વિગેરે વિશેષણ वाणा होय हे ? मडियां यावत् पढ्थी 'चरमेहिंतो नेरइएहि तो परमा नेरइया महाकम्मतराए चैव महाकिरियतराए चेत्र, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चैव, परमेहिंतो "नेरइएहि तो, चरमा नेरइया अप्पकम्मतराए चेव, अप्पकिरियतराए चैव अप्पासवतराए चेव' मा पूर्वेति पाठ श्रथ राय है. ,, र्मा,अश्नना उत्तरसां अलु उहे है- गोयमा ! ठिइं पडुच्च एवं बुच्चइ जाव अप्पवैयणतराए चेव' हे गौतम! यूवेति प्रारथी में ? 'ह्यु' छे, ते તેઓની સ્થિતિને ઉદ્દેશીને કહ્યુ છે. અર્થાત્ સ્થિતિની અપેક્ષાએ પરમ નારક ચરમ નારકાી મહાક્રમ તંર મહાક્રિયાતર મર્હાઆસવતર મહાવેદનતર એ વિશેષશેવાળા ‘હાય છે; તથા ચરમનારક પરમ આયુષ્યવાળા નારકાની
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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