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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१९ उ०४ सू०१ नारकादीनां महावेदनावत्वनि० ३७७६ गोयमा' हे गौतम ! 'गो इणटे सम?' नायमर्थः समर्थः, अयं पञ्चदशभङ्गात्मक पक्षी नारकविपये न घटते नारकाणामात्रक्रियावेदनानां बहुत्वात -निर्जसंया वाल्पत्वादिति पञ्चदशो भङ्गः १५ । 'सिय भंते नेरइया' स्युः भदन्त ! नैरयिकाः 'अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा' अल्पावा अल्पक्रिया अल्पवेदना अल्पनिर्जराश्च किम् ? इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः अयं पोडशभङ्गात्मकः पक्षो नारकविषये न घटते तेपामासवक्रियावेदनानां बहुत्वादिति. पोडशो भगः १६ । 'एए सोलासभंगा' एते पूर्वोक्ताः षोडशमगा नारकविषये भवन्ति । अथ अंगुल्यु परिसंख्यया छते एव उपर्युक्तभङ्गेषु पोडशवसिद्धे, पोडशभङ्गा इति कथनं निरर्थकमिति चेन भङ्ग न्यूनाधिकसंख्याव्यवच्छेदार्थ भंग है वह हे गौतम ! नारकों में इस कारण से नहीं घटित होता कि नारकों में आस्रव किया और वेदना इन सब की अधिकता रहती है और निर्जरा की अल्पता रहती है। 'सिय भंते ! नेरच्या अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा' यह जो १६ वां संग है वह हे गौतम ! नारकों में नहीं घटता है कारण को नारकों में आस्रव क्रिया और वेदना की बहुत अधिकता होती है। इस प्रकार से ये १६ भंग हैं । यहाँ ऐसी शंका हो सकती है कि 'एए सोलसभंगा' इस प्रकार से कहने की क्या आवश्यक्ता सूत्रकार को लगी? क्योंकि गिनने से सोलह की संख्या साध्य हो जाती है ? खो ऐसी शंशा करना ठीक नहीं है कारण कि 'एए सोलसभंगा' ऐसा जो कहा गया है वह भंगों की न्यूनाधिक संख्या की निवृत्ति के लिये कहा गया है या श्रोतृजनों को सुख से કારણ કે–નારમાં આસવ, ક્રિયા, અને વેદના એ ત્રણેનું અધિક પણ હોય છે. અને નિર્જરાનું અલ્પપણું હોય છે. 'सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिजा' આ પ્રમાણે જે ૧૬ સોળ ભંગ છે તે પણ હે ગૌતમ નારકમાં ઘટતા નથી. કારણ કે નારકમાં આસવ, ક્રિયા અને વેદનાનું અધિપણું હોય છે. આ રીતે ઉપરોક્ત આ સેળ ભંળે છે. मलियां मेवी श य श छ -'एए स्रोलसभंगा' मा प्रभारी કહેવાની સૂત્રકારને શી જરૂર હતી? કેમ કે ગણવાથી સેળની સંખ્યા ચક્કસ જણાઈ આવે છે. તે પછી તેમ કહેવાનું શું, કરણ छ १ मा प्रभारी । ४२वी ही नथी. ४१२५ 'एए सोलसभंगा' : જે કહેવામાં આવ્યું છે, તે ભાગોની છાવત્તી સંખ્યાના નિવારણ માટે
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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