SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ ३०३ सू०२ जघन्योत्कृष्टावगाहनायाल्पबहुत्वम् ३३७ भरति १२ । 'तस्सेव अपज्जत्तस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' तस्यैव सूक्ष्मनिगोदस्य अपर्याप्तकस्य उस्कृष्टाऽवगाहना विशेषाधिका भवतीति १३ । 'तस्स चेव पज्जत्तगम्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' तस्यैव सूक्ष्मनिगोदस्यैव पर्याप्तकस्य उत्कृष्टाऽवगाहना विशेषाधिका भवतीति १४ । 'मुहुमवाउकाइयस्सं पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुगा' सूक्ष्मवायुवायिकस्य पर्याप्तस्य जीवस्य जघन्याऽवगाहना पूर्वापेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवतीति १५ । 'तस्स चेा अपज्जतगास उकोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' योप्तक चादर एकेन्द्रिय जीवों को अवगाहना उत्तरोत्तर असंख्यातगुणित अधिक प्रकट कर अब सूत्रकार पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंकी अवगाहना प्रकट करते हैं-इसमें सबसे पहिले पर्याप्तक सूक्ष्म निगोदिया जीव की जघन्य अवगाहना प्रकट की जाती है सूक्ष्मनिगोदिया पर्याप्तक जीव की जघन्य अवगाहना, पूर्वकी अपेक्षा से असंख्यातगुणित अधिक होती है १२ 'तस्लेव अपज्जत्तगस्त उक्कोलिया ओगाहणा विसेसाहिया' अपर्याक सूक्ष्म नियोदिया जीव की उस्कृष्ट अवगाहनो विशेषाधिक होती है १३ 'तस्स चेव पज्जत्तगस्त उक्कोलिया ओगाहणा विसेसाहिया' तथा पर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक होती है १४ 'सुहमवाउकाइयरस जहन्निया ओगाहणा असंखेज्ज. गुणा' सूक्षमवायुकायिकपर्याप्त जीव की जघन्य अवगाहना पूर्व की अपेक्षा असंख्यानगुणित अधिक होती है १५ तस्स चेव अपज्जत्तगस्स અપર્યાપ્તક ખાદર એકેન્દ્રિય જીની અવગાહના ઉત્તરોત્તર અસખ્યાત ગણિ અધિક બતાવીને હવે સૂત્રકાર પર્યાપ્તક એકેન્દ્રિય જીની અવગાહના પ્રગટ કરે છે. તેમાં સૌથી પહેલાં પર્યાપ્તક સૂક્ષમ નિદિયા જીવની જઘન્ય અવઅવગાહના બતાવવામાં આવે છે. સૂક્ષમ નિદિયા પર્યાપ્ત જીવની જઘન્ય भान पानी अपेक्षा मण्यात य छ १२ 'तस्सेव अपज्जत्तास्स उनकोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' अपर्याप्त सक्ष्म निगोहिया ट अगाडना विशेषाधि यि छ १३ 'तस्य चेत्र पज्जत्तास्त्र कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' तथा पनि सक्षम नगहिया पनी Grve साना विशेषाधि४ सय छ १४ 'सुहुमवाउकाइयस्स पज्जत्तगरस जहन्निश ओगाहणा असंखेज गुणा' सूक्ष्म वायुयिपर्याप्त eqनी धन्य અવગાહના પહેલાની અપેક્ષાએ અસંખ્યાતગણિ અધિક હોય છે.૧૫ “તરણ भ० ४३
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy