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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०३ सू०२ जघन्योत्कृष्टावगाहनायाल्पचहुत्वम् ३३५ यिकापेक्षया असंख्येयगुणा अधिका भवतीति ४ । 'सुहुमपुढवीकाइयस्स अपज्जत्तस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' संक्षमपृथिवीकायिकस्य जीवस्या पर्याप्तस्य जघन्यावगाहना सूक्ष्मापर्याप्ताप्कायिकजीवापेक्षयाऽसंख्येयगुणाधिका भवतीति ५। 'बादरवाउकाइयस्त अपज्जत्तस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' 'बादरवायुकायिकस्यापर्याप्तकस्य जघन्याऽवगाहना असंख्येयगुणाधिका भवति सूक्ष्मापर्याप्तपृथिवीकायिकापेक्षयेति ।। 'वायर तेउक्काइयस्स अपज्जत्तस्स जहन्निया, ओगाहणा असंखेज्जगुणा' बादरतेजस्कायिकस्य जीवस्यापर्क प्तकस्य जघन्याऽागाहना वादरापर्याप्तवायुकायिकनीवापेक्षया असंख्येयगुणा. धिका भवतीति ७ । 'वादर आउकाइयस्स अपज्जत्तस्स जहन्निया ओगाहणा अवगाहना से असंख्यातगुणी जघन्य अवगाहना 'सुहुमपुढवीकाइ. यस्स०' सूक्ष्म अपर्यास पृथिवीकायिक जीव की होती है ५ इस प्रकार से सूक्ष्म अपर्याप्तक वायुकाय से लेकर सूक्ष्म अपर्याप्तकपृथिवीकायिक जीव तक यह जघन्य अवगाहना कही गई है। अब बादरअपर्यासक वायुकायिक से लेकर बादर अपर्याप्तक पृथिवीकायिक तक के जो जीव हैं उनकी जघन्य अवगाहना प्रकट की जाती है-'पादरवाउकाइयस्स अपज्जत्तस्स जहनिया ओगाहणा असंखेज्जागुणा' सूक्ष्म अपर्यासक पृथिवीकायिक की जितनी जघन्य अवगाहना प्रकट की गई उससे असंख्यातगुणी जघन्य अवगाहना अपर्याप्त बादरवायुकायिक जीव की है ६ 'बादर तेउकाहयस्त०' अपर्याप्त बादरवायुकायिक जीव जघन्य अवगाहना की अपेक्षा अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिक जीव की जघन्य અપર્યાપ્તક અપ્રકાયિક જીવની જઘન્ય અવગહનાથી અસંખ્યાત ગણી જઘન્ય भाना 'सुहुम पुढवीकाइयस्स०' सूक्ष्म अपर्याप्त वियि पनी હોય છે. ૫ એજ રીતે સૂક્ષમ અપર્યાપ્તક વાયુકાયિકેથી આરંભીને સૂક્ષમ અપર્યાપ્તક પૃવિકાયિક જી સુધી આ જઘન્ય અવગાહના કહી છે. હવે બાદર અપર્યાપ્તક વાયુકાયિકાથી લઈને બાદર અપર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિક સુધીના २७ छ, तमानी धन्य अवगाहुना मतावामां आवे छे. 'बादर वाउ काइयस्स अपज्जत्तस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' सूक्ष्म अपर्याप्त પૃવિકાયિકની જેટલી જઘન્ય અવગાહના બતાવી છે, તેનાથી અસંખ્યાત गए धन्य भगाना अपर्याप्त मा४२ वायुयि वानी छ ६ 'वादर तेउकाइयस्स.' अपर्याप्त पा२ वायुयि: पनी धन्य अपमानानी અપેક્ષાથી અપર્યાપ્તક બાદર તેજસ્કાયિક જીવની જઘન્ય અવગાહના અસં
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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