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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०३ सू०२ जघन्योत्कृष्टावगाहनायाल्पवहुत्वम् ३३३ संग्रहो भवति तथा हे भदन्त ! पृथिव्यप् तेजोवायुवनस्पतिकायिकजीवानां सूक्ष्मवादरपर्याजापर्याप्तभेदभिन्नानाम् जघन्योत्कृष्टायामवगाहनायां कतरे कतरेभ्यो ऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सवत्थोवा मुहुमनियोयस्त' सर्वस्तोका सूक्ष्मनिगोदस्य 'अपजत्तस्स जहन्निया ओगाहणा' अपर्याप्तकस्य जघन्या अवगाहना भवति सूक्ष्मनिगोदापर्याप्त जीवानां सर्वापेक्षया स्तोका जघन्याऽवगाहना भवति इति भावः ॥१॥ 'मुहुमवाउक्काइयस्स अपज्जत्तगस्स' सूक्ष्मवायुकायिकस्य अपर्यासकस्य 'जहनिया ओगाहणा असंखेजगुणा' जघन्याऽवगाहना असंख्येयगुणा सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तजीवापेक्षया सूक्ष्मवायुकायिकापर्याप्तकजीवानां जघजीव यावत् विशेषाधिक हैं ? यहां यावत्पद से 'अप्पावातुल्ला वा' इन पदों का संग्रह हुआ है तथा च सूक्ष्मषादपर्याप्तअपर्याप्त इन भेदवाले पृथिवीअपू तेज वायु और वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना में कौनसी अवगाहनावाले जीव कौनसी अवगावहनावाले जीवों से अल्प है ? कौनसी अवगाहनावाले जीवों से बहुत है ? कौलसी अवगाहनाबालों के बराबर हैं ? और कौनसी अवगाहनाबालों से विशेषाधिक हैं ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-'गोयमा' सव्यत्यो वा सुहुम' हे गौतम ! सूक्ष्मअपर्याप्तक निगोद जीव की जघन्य अवगाहना सब से कम कही गई है ? 'सुहमवाउकाइयस्स अपजत्तगस्स.' इसकी अपेक्षा सूक्ष्म अपर्याप्तक वायुकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी हैं इसे यो समझा जा सकता है कि छ ? मडियां 'अप्पा वा तुला वा' मा पनि सघड थयो छे. तना अर्थ આ પ્રમાણે છે-સૂમ બાદર પર્યાપ્તક અપર્યાપ્તક એ ભેદવાળા પૃથ્વિકાયિક, અપકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક ની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહનાવાળા જ કઈ અવગાહનાવાળા જીવોથી અલ્પ છે? અને કઈ અવગાહનાવાળા જીવોથી વધારે છે ? અને કઈ અવગાહનાવાળાની બરાબર છે? અને કઈ અવગાહનાવાળાએથી વિશેષાધિક છે? गौतम स्वामीना मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४९ छ -गोयमा ! सव्व स्थो वा सुहुम० 3 गीतम! सूक्ष्म अपर्याप्त निगा। यानी धन्य म गाना माथी माछी ४डी छ.१ 'सुहुमवाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स०' હે ગૌતમ! તેની અપેક્ષાએ સૂમ અપર્યાપ્તક વાયુકાયિકની જઘન્ય અવગાહના અસંખ્યાત ગણિ છે. આ કથનને ભાવ એ છે કે-જે સૂક્ષમ અપાય
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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