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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०३ सू०२ जघन्योत्कृष्टावगाहनायास्पबहुत्वम् ३३१ ३६-३८ । सर्वेषां त्रिविधेन गमेन भणितव्यम् वादरनिगोदस्य पर्याप्तकस्य जघन्याऽवगाहना असंख्येयगुगा ३९ । तस्यैव अपर्याप्तकस्य उत्कृष्टा अवगाहना विशेषाधिका ४० । तस्यैव पर्याप्तकस्योत्कृष्टाऽवगाहना विशेषाधिका ४१ । प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकस्य पर्याप्तकस्य जघन्याऽवगाहना असंख्येयगुणा ४२ । तस्यैवापकस्य उत्कृष्टाऽवगाहना असंख्येयगुणा ४३ । तस्यैत्र पर्याप्तस्य उत्कृष्टाऽवगाहना असंख्येयगुणा ४४ ॥ ०२ ॥ जीव की उत्कृष्ट अवगाहना है ३६, ३७, ३८ (सव्वेसि तिविहेण गमेणं भाणिय) इस प्रकार के तीन गमों से सब वायुकायादिकों की अवगाहना कह लेनी चाहिये (बादरनिओगस्स पज्जन्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ) इससे बादर निगोद पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ३९ (तस्स चेव अपज्जन्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा बिसेसाहिया ४०) इससे अपर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषधिक है । (तस्स चैव पज्जन्त्तर्गस्स उक्कोसिया ओगा. हणा विसेसासिया) इससे पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है ४१ (१त्तेयसरीरबादरवणस्स इकाइयस्स पत्तज्जत्तगस जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ४२ ) इससे प्रत्येक शरीर, वाले बादर वनस्पतिकायिक जीव की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । (तस्स चेव अपज्जन्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ४३) इससे अपर्याप्त प्रत्येक शरीरवाले वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अव 'सव्वेसिं तिविद्देणं गमेणं भाणियन्त्र' मा रीतना त्रयु गभौथी अधान वायुआयिोनी भवगार्डेना सभल सेवी 'बादर नियोगस्स पज्जतगस्थ जहनिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' तेनाथी माहर निगोह पर्याप्तउनी धन्य भवगाहना असभ्यात गणी छे.उ८ 'तस्स चेव अपज्जत्तगस्त उक्कोखिया ओगाहणा विसेसाहिया' तेनाथी अपर्याप्त महर निगोहनी अड्डष्ट अवगाडेना विशेषाधि ४ ४० ' तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेखाहिया' तेनाथी पर्याप्त बाहर निगोहनी उत्डष्ट अवगाहना विशेषाधि छे. ४१ 'पत्तेयसरीर बादरवणस्स इकाइयस्व पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' तेनाथी પ્રત્યેક શરીરવાળા અદર વનસ્પતિકાયિક જીવની જઘન્ય અવગાહના અસ ध्यात गणी छे. 'तस्स चेत्र अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' તેનાથી અપર્યાપ્તક પ્રત્યેક શરીરવાળા વનસ્પતિકાયિક જીવની ઉત્કૃષ્ટ અવ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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