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________________ प्रमैर्यथन्द्रिका टीका शं०१९ उ०३ सू०२ जघन्योत्कृष्टावगाहनायाल्पबहुत्वम् ३२३ वनस्पतिकायिकानां स्थितिः जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् 'उकोसेण वि अंतोमुहुत्तं' उत्कृष्टतोऽपि अन्तर्मुहूर्त्तं पृथिव्यादिकायिकजीवेषु उत्कृष्टतः स्थितिः भिन्ना भिन्ना कविता तत्स्थाने वनस्पतिकायिकेषु अन्तर्मुहूर्तमात्रैव कथिता जघन्यतस्तु स्थितिः सर्वेषामपि समानैवेति । 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव - पूर्ववदेव यदुक्तं तद्भिन्नं समुद्घातादिकं पूर्ववदेव अवगन्तव्यमिति संक्षेपः ॥०१॥ अथ एषामेव पृथिवीकायिकादिजीवानां जघन्योत्कृष्टावगाहनाया अल्प बहुत्वनिरूपणायाह- 'एएसि णं भंते !' इत्यादि । मूलम् - एएसि जं भंते! पुढवीकाइयाणं आउतेउवाउवणएसइकाइयाणं सुहुमाणं बायराणं पजत्तगाणं अपजत्तगाणं जाव जहन्नुक्कोसियाए ओगाहणाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसा - हिया वा ? गोयमा सम्वत्थो वा सुहुमनिओयस्स अपज्जतस्स जहन्निया ओगाहणार, सुहुमवाउक्काइयस्स अपजत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा २ | सुहुम तेउकाइयस्स अपज - तस्स जहनिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ३ | सुहुम आउकाइयस्स अपज्जसहस जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा४ । 'ठिई' स्थिति 'जहन्ने णं' जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और 'उक्को - सेन' उत्कृष्ट से भी 'अंतो मुहतं' अन्तर्मुहूर्त की ही है पृथिवीकायिक जीवों में उत्कृष्ट से स्थिति भिन्न २ कही गई है । उसके स्थान में वनस्पतिकायिकों में केवल अन्तर्मुहूर्त की ही स्थिति कही गई है । तथा जघन्य की अपेक्षा स्थिति सब की एफसी ही है । 'सेसं तं 'चेव' इस कथन से अतिरिक्त और सब समुद्घातादिविषयककथन पूर्वोक्त जैसा ही है ऐसा जानना चाहिये ॥ सू० १ ॥ मुहुत्तं' मे४ अन्तर्मुहूर्त'नी छे. पृथ्वियि वामां उत्सृष्टस्थिति भिन्नभिन्न કહી છે, અને વનસ્પતિકાયકામાં કેવળ અન્તર્મુહૂતનીજ સ્થિતિ કહી છે. તથા अधन्यनी अपेक्षाथी या मधानी स्थिति मे सरणी हे 'सेसं तं चैव मा કથનથી ભિન્ન ખીજુ ખધુ સમુદ્દાત વિગેરે સબંધી કથન પૂર્વોક્ત પ્રમાણે જ छे, तेभ समन्वु ॥ सू. १ ॥
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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