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________________ - भगवतीस्ने ध्यमितिभावः । 'वाउकाइयाणं एवं चे' वायुकायिकानाम् एवमेव, वायुकायिकजीवानां स्यादादिद्वाराणि सर्वाण्यपि पृथिव्यादिवदेव ज्ञातव्यानि 'नाणत्तं नवरं चत्तारि समुग्घाया' नानात्वं भेदः नवरम्-अयं विशेषः चत्वारः समुद्घाताः, वायुकायिकानां चत्वारः समुद्घाताः पृथिव्यादीनां त्रयाणामपि आधास्त्रय एव समुयाताः वायुकायिकानां तु वेदनाकपायमारणान्तिकवैक्रियाख्याश्चत्वारः समु. धाता भवन्ति वायुकायिकजीवानां वैक्रियशरीरस्य सद्भावादिति । 'सिय भंते! स्याभदन्त ! 'जाव चत्तारि पंच वणस्सइकाइया० पुच्छा' यावत् चत्वारः पञ्चवनस्पतिकायिका जीना इति पृच्छा प्रश्नः हे भदन्त ! वनस्पतिकायिकाः द्वौ त्रयः चत्वारः पंच वा जीवाः एकीभूय साधारणमेकं शरीरं वघ्नन्ति ततः पश्चात् आहविलक्षणता प्रकट की गई है उन बातों को छोडकर और सब समुद्धातादि द्वारों के कथन में समानता ही है। 'वाउक्काइयाण एवं चेव' वायुकायिक जीवों में स्यात् आदि द्वारों को लेकर जैसा कथन पृथिव्यादिकों में किया गया है बैसा ही है यदि पूर्व कथन की अपेक्षा वायु: काय के कथन में कोई अन्तर है तो वह समुद्घात द्वार को ही लेकर है क्योंकि वायुकायिक जीवों के चार समुद्घात होते हैं। पृथिवी आदिक जीवों के आदि के ३ समुदघात होते हैं वेदना, कषाय मारणान्तिक और वैकिय ये चार समुद्घात वायुकायिकों में होते हैं। क्योंकि वायुका. 'यिकों के वैक्रियशरीर का सद्भाव कहो गया है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच घणस्मइकाइया' हे भदन्त ! क्या कदाचित् दो तीन, चार या पांच वनस्पतिकायिक जीव एक होकर एक साधारण शरीर का बन्ध વિલક્ષણપણું બતાવેલ છે તે વાતને છેડીને બીજી તમામ સમુદ્રઘાત વિ. દ્વારના કથનમાં સરખાપણું જ છે, __ 'वाउकाइयाण एवं चेव' वायुायिः वामां श्यात' विगेरे वासना સંબંધમાં પ્રષ્યિકાયિકાદિનું જેવું કથન કર્યું છે. તે જ પ્રમાણે છે. પૂર્વ કથનથી વાયુકાયિકાદિકના કથનમાં જે બીજુ કાંઈ અંતર છે તે સમુદુઘાતના દ્વારને લઈને જ છે કેમ કે–વાચકાયિક જીવને ચાર સમુદુઘાત હોય છે. પૃવિકાયિક ને આદિના ત્રણ જ સમુદ્રઘાત થાય છે. વાયુકાયિકેને વેદના સમુદ્દઘાત, કષાય સમુઘાત મારણતિક સમુદૃઘાત અને વૈક્રિય સમૃદુઘાત એ ચારસમુદુઘાત હોય છે કેમ કે વાયુકાચિકેને વક્રિય શરીરને સદ્ભાવ કહ્યો છે. वे गौतम स्वामी प्रसुने ये पूछे छे हैं-'खिय भंते ! जाव, चत्तारि पंच वणस्सइकाइया' मग वार , ३ यार अथवा पाय वना
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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